कुंदन लाल सहगल की यादें - RJSURABHISAXENA

कुंदन लाल सहगल की यादें

-:स्वर्गीय कुंदन लाल सहगल जी की पुण्यतिथि पर विशेष:- हिन्दी फिल्मों के शुरूआती दौर में केएल सहगल को निस्संदेह एक सुपर स्टार का दर्जा हासिल था क्योंकि उन्होंने अपनी गायन की विशिष्ट शैली के कारण न केवल लोगों को झूमने पर मजबूर कर दिया बल्कि गायकों की भावी पीढ़ी के लिए पेरणा बन गए। कुंदन लाल सहगल के गायन की शैली की कुछ समय तक प्रसिद्ध पार्श्व गायक मुकेश और किशोर कुमार ने भी नकल की थी।

फिल्मी गानों के अलावा सहगल ने ख्याल ठुमरी गजल गीत और भजन भी गाये। लेकिन दिलचस्प तथ्य है कि उन्होंने शास्त्रीय संगीत का विधिवत प्रशिक्षण नहीं लिया था। सहगल ने वैसे तो बचपन से ही गाना शुरू कर दिया था लेकिन जब 13 वर्ष की उम्र में उनकी आवाज फटने लगी तो उन्हें इस बात का बेहद सदमा लगा। अपनी बदली हुई आवाज से वह इतना निराश हो गए कि उन्होंने कई महीनों तक नहीं गाया। बाद में उन्हें एक संत ने गायन नहीं छोड़ने को कहा।
इसके बाद सहगल ने तीन साल तक गायन का अभ्यास किया। शुरू में सहगल ने अपने दौर के लोकप्रिय शास्त्रीय संगीतकार फैयाज खान पंकज मलिक और पहाड़ी सान्याल से भी कुछ मदद ली। लेकिन उन्होंने गायन में रियाज के दौरान अपनी विशिष्ट शैली विकसित करने पर जोर दिया और बाद में यही उनकी पहचान बनी।
सहगल के लिए 1935 का वर्ष विशेष महत्व रखता है क्योंकि इसी साल शरद चन्द्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास पर आधारित फिल्म देवदास प्रदर्शित हुई। इस फिल्म का मुख्य पात्र और उस किरदार को निभा रहे सहगल की निजी जिंदगी दोनों में एक समानता थी कि दोनों काफी अधिक शराब पीते थे। देवदास फिल्म के गाने 'बालम आये बसो और दुख के अब दिन' बेहद लोकप्रिय हुए। देवदास के बाद सहगल ने भक्त सूरदास तानसेन कुरूक्षेत्र उमर खैयाम तदबीर जैसी कई सफल फिल्मों में काम किया जिनमें अभिनय भी शामिल है।
उनके बेहद लोकप्रिय गानों में दिया जलाओ जगमग जगमग दिले बेकरार झूम गम दिये मुस्तकिल और जब दिल ही टूट गया शामिल हैं। उस समय अभिनेताओं को अपने गीत स्वयं ही गाने होते थे। सफलता के साथ साथ सहगल की शराब पीने की आदत भी बढ़ती गयी। महज 42 साल की उम्र में इस महान कलाकार ने सदा के लिए आंखें मूंद ली। उन्होंने हिन्दी बांग्ला और तमिल फिल्मों के लिए काम किया तथा हिन्दी पंजाबी उर्दू फारसी बांग्ला सहित कई भाषाओं में गाने गाये। सहगल के इन गानों के कारण जनमानस में उनकी स्मृतियां सदा जीवित रहेंगी।
फेसबुक पर एक कविता द्ववारा कुंदन लाल सहगल को याद किया गया
सिने-जगत के अमर अदाकार एवं गायक कुन्दनलाल साहब को आज उनके पुण्यतिथि पर भावभीनी श्रद्धांजलि.....
आदमी तो आता है इस जग में
फिर एक दिन चला जाता है,
उनमें कुछ अपने कर्मबल पर
दुनिया में अमर हो जाता है।
ऐसे ही थे के एल सहगल जी
नाम जिनका मशहूर हुआ,
अपनी मेहनत के बल पर
फिल्मी दुनिया में अमर हुआ।
जम्मू के एक तहसीलदार के घर
अमीरचंद था जिनका नाम,
११ जनवरी १९०४ को
जन्म हुआ सहगल साहब का।
बचपन बीता अभावों में
शिक्षा किसी तरह हुई पूरी,
कष्टमय हुआ जब जीवन-यापन
करनी पड़ी छोटी नौकरी।
बचपन के दिनों से ही उनका
रूझान था गायकी की ओर,
किसको पता था एक दिन
नाम का डंका बजेगा चहुँओर।
जब सहगल जी कोलकाता पहुँचे
सन् १९३० की है ये बात,
न्यू थियेटर में बी एन सरकार से
हुई उनकी पहली मुलाकात।
२००रू  मासिक पर मिली नौकरी
हुई जीवन की नई शुरुआत,
फिर संगीतकार यू सी बोराल से
सहगल जी की हुई मुलाकात।
तकदीर का सितारा चमका
उर्दू फिल्म में मिल गया काम,
शुरू हुआ फिर अभिनय का सफर
मिला उन्हें एक नया मकाम।
फिल्म 'पूरण भगत'की सफलता ने
दे दी उन्हें नई पहचान,
दिलकश अदाकारी और गायकी से
रहा न अब कोई अंजान ।
देवदास, प्रेसिडेंट, स्ट्रीट सिंगर
आदि फिल्में हिट हुई तमाम,
मिल गई उन्हें बड़ी कामयाबी
बुलंदियों पर पहुँच गया नाम।
१९४२ में बनी फिल्म सूरदास
जिसने रचा नया इतिहास,
सहगल जी की मदभरी आवाज़ से
बुझने लगी संगीतप्रेमियों की प्यास।
दो दशक की फिल्मी कैरियर में
करीब३६ फिल्मों में अभिनय किया,
अपनी जादूगरी आवाज़ से
संगीतप्रेमियों का दिल जीत लिया।
सहगल जी की लोकप्रियता को
रेडियो सिलोन चोटी पर पहुँचाया,
उनकी दिलकश आवाज़ को
दैनिक दिनचर्या का हिस्सा बनाया।
सुबह के ७:५५ बजते ही
उभरने लगती उनकी आवाज़,
समझ जाते सुनकर लोग कि
आठ बजनेवाले हैं आज।
शराब-सिगरेट की लत के कारण
४३ की उम्र में इस जगत से दूर हुए,
१८ जनवरी १९४७ के दिन
संसार को अलविदा कह गए।
जबतक रहेगे चाँद सितारे
गूँजती रहेगी उनकी आवाज़,
शत शत नमन उन्हें करते हैं
श्रद्धा-सुमन अर्पित करते हैं आज।

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