वक़्त के सांचे में
वक़्त के सांचे में, तू ढलती भी नहीँ
रेती जैसे हाथ से फिसलती भी नहीं
तू भी दरिया से समंदर हो सकती है
क्यों संग दरिया के तू भी बहती नहीं ....
रेती जैसे हाथ से फिसलती भी नहीं
तू भी दरिया से समंदर हो सकती है
क्यों संग दरिया के तू भी बहती नहीं ....
ख्वाहिश न रख, एक अनजान से अपने की
राह न तक्क, अब तू ख़्वाब में भी सपने की
वो तो दूर का चाँद है दूज में ही दिखता होगा
ओ पगली तू बात न कर अब उसके टिकने की .....
राह न तक्क, अब तू ख़्वाब में भी सपने की
वो तो दूर का चाँद है दूज में ही दिखता होगा
ओ पगली तू बात न कर अब उसके टिकने की .....
#सुरभि
वाह ।
ReplyDeletethnx :D
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