मुट्ठी भर आकाश - समीक्षा - संभावनाओं की जमीन पर....
"मुट्ठी भर आकाश" युवा कवयित्री सुरभि सक्सेना का पहला
काव्य-संग्रह है। इसमें कुल 75 कविताएं संकलित
हैं।
कुछ तुकान्त तथा कुछ अतुकान्त कविताएं है। इन कविताओं कि विषयवस्तु कवियत्री
अपने परिवेश से उठाती है।
कविताओं में प्रेम कविताओं का समावेश अधिक है, कहीं-कही
शैली आत्मकथात्मक नज़र आती है। कविता वस्तुतः जीवन की व्याख्या है।
हर व्यक्ति की जीवन
शैली तथा अनुभूति की गहराई भिन्न-भिन्न होती है। जो उसके लेखन को प्रभावित करती
हैं। एक कविता ’सुरभित मै’ में देखिये,-
एक सूरज / उग रहा/ मेरी भी
ज़िंदगी मे/ कुछ बादलों से छिपकर/ एक ओट में/ सिमटकर/एक नन्ही सी किरण/ छम से/ मुझ
पर भी आ पड़े जो /आशा यही है /मेरी/ रौशन सवेरा होगा/ मेरी भी ज़िंदगी में।
प्रेम का यह उच्छल रुप एक सकारात्मक उजास फैलाता है। कवि मन
निरंतर हिरन की तरह कुलाचें भर रहा है।
एक बानगी यह भी देखिये;--
कभी कभी
मेरे दिल का पंछी
दूर गगन उड़ जाता है
सतरंगी / सपनों
की दुनियाँ के सपने चुन कर लाता है।
स्वप्न, प्रकृति, सौंदर्य, युवावस्था का सम्मिलित स्वर
प्रेम की गहन अनुभूति में अभिव्यक्त होता है। कविता की इन पंक्तियों में कवयित्री
का ये विश्वास है कि प्रेम से ही मानवीय संवेदनाओं को अर्थवत्ता प्राप्त हो सकती
है, सुरभि कहती है कि;-
मेरे हाथों को थामा है
मेरे दिल को संभालो तुम
मोहब्बत एक
नगमा है
मेरे गीतों को गा लो तुम।
इस संग्रह को पढ़ते-पढ़ते पाठक अचानक ठहर सा जाता है, कहीं
कहीं कवयित्री एक छोटे बच्चे सी बन पुकार उठती है कि
मन करता है मेरा/मै फिर नन्ही बिटिया बन जाऊँ/अपने पापा की
थाली से/फिर कुछ कौर उठा कर खाऊँ...
"एक खूबसूरत संग्रह योग्य कविता का रसास्वादन करें यह भी...
सखी थोड़ी सी/बरसात यहाँ भी भेज सखी/एक सावन की/आस यहाँ भी
भेज सखी..."
इस कविता संग्रह की विशेषता यही है कि स्वप्निल छवि चिर
नूतन और चिर युवा रहती है, एक निष्काम समर्पण और प्रेम भाव से लिप्त कवयित्री की
ये पंक्तियाँ देखिये...
"स्वप्न’ नैनों के नील कुंज में,/स्वप्न सजाये बैठी हूँ/नव्य-नवेली
दुल्हन सी
मै आज लजाये बैठी हूँ..."
इस संग्रह को पढ़कर लगता है कि कवयित्री की प्रेम भावना
संकीर्ण और आत्मकेंद्रित नहीं हैं। प्रेम में निराशा अथवा अवसाद नहीं हैं बल्कि एक
ऊध्वोर्न्मुखी चेतना से प्रेम का व्यापक रूप दिखाई पडता है।
पुस्तक की भाषा अत्यंत
सरल, सहज, व प्रवाहमयी है। कवयित्री का यह पहला काव्य-संग्रह उसकी भावी संभावनाओं
की जमीन तैयार करता है...
शुभकामनाओं सहित...
सुनीता शानू
कवयित्री एवं लेखिका
दिल्ली
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