"एक सरलता है बालक सी”
नेत्रों
में है, निर्मल ज्योति
ह्रदय
में, कोमल दुलार..
द्रढ-प्रतिज्ञ,कोमल
है
मन
वीर
भारती, हैं सजल नयन
कंटक
सी, राहें हैं जिनकी
ये
पद -क्षेत्र है लहुलुहान..
आह नहीं फिर भी भरता,
है सत्य मार्गी, कर्ता धर्ता
आह नहीं फिर भी भरता,
है सत्य मार्गी, कर्ता धर्ता
इस
झूठ स्वार्थ की बेदी पे
उसे
भी है जलना पड़ता
है
सदाचार,
उत्तम विचार
दिया
प्राण को सहजाचार,
मर्यादा
के बंधन में बंधकर
हों
शासित, अपनों से हटकर.....
तुम
दिव्य-पुंज,
महात्मा हो
शीतल
उज्जवल आत्मा हो
जनहित
चिर आकांक्षित हो,
धरा
सुशोभित, दीपक
हो
तुम
शांत
सरल, बुद्धात्मा
हो
प्राणों
में है, पीड़ा कितनी
पर
मन में रखा विवेक
खड़े
स्वयं बल है इतना
नहीं
चाहिए कोई टेक
इस
दुनिया
में हैं ऐसे भी लोग
जो
सत्य नहीं अपनाते है
हाँ
झूठ को गले लगाते हैं
और
वहीँ खड़े हो तुम....
जो
अंतर को तार तार करे
एक
ऐसी चीख सुनी हमने
वहां
तुम्हारा मौन बड़ा
भारत
माँ का प्यारा बेटा
देखो
सीमा पर अटल खड़ा...
अटल
सत्य है, विजय अटल
द्रढ-प्रतिज्ञ
होगा ना विफल
सत्य
मार्गी, कवि हृदय
यही
आपका ज्ञान सत्व
संत
आचरण, महान चिंतक
हैं
पदम् विभूषण, अलंकृत …..
“भारत रत्न
पा हुआ, जीवन गर्वित”
सुरभि
सक्सेना
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