बदलाव की जरूरत ....
मासूम सा मन कितना घायल है .. शरीर पर न जाने कितने ज़ख्मों की पीर है .. एक मासूम जो आगे जाकर देश का भविष्य बनती ... जिसे रोंध दिया हवस के मारों ने ... न जाने इतनी हैवानियत और वहशीपन कहाँ से आ जाता है इक आदमी के मन में .... किसी विधवा का घर बसाने की हिम्मत नहीं कर पाने वाला आदमी कैसे एक मासूम बच्ची के जिस्म पर जबरदस्ती अधिकार जमा कर मर्दानगी की हिम्मत कर बैठता है .... उस दर्द का एहसास वो कराह उफ़ जिसकी कल्पना भी दर्दनाक है ... क्या उस समय वासना की पूर्ति के आगे तुच्छ हो जाती है .... कैसे आखिर कैसे और कहाँ जा रहा है ये संसार ... क्या उनके अपने घर में बेटी नहीं जो इस तरह के दुष्कर्म करते हैं ...क्या शारीरिक भूख इस कदर हावी है की सभी संवेदनाएं ख़त्म हो जाती हैं ... क्या यही है इक सामाजिक समाज और लोग .. उस पर हमारा कानून जो इस तरह के दुष्कर्म करने वालों के खिलाफ़ कुछ नहीं करता ... इसलिए आये दिन इस तरह की घटनाएँ दिन प्रति दिन बढती जा रही है ...
एक बार .. बस एक बार ऐसी सजा दी जाये ऐसे हैवानों को जो अपने आप में मिसाल हो और कोई भी मर्द इस तरह अपनी मर्दानगी दिखाने की हिम्मत न करें !!! पर बड़ा सवाल ये है की क्या गुनाह कुबूल कर लेने के बाद उन हैवानो को सजा वक़्त पर दी जाएगी क्या दर्द से जूझ रही एक आत्मा को समय पर सही इन्साफ मिल पायेगा ...
इंतजार है एक बदलते हुए मजबूत कानून की जो ऐसे दरिंदो को सबक सिखा दे !!!! अब सोचने का नहीं ..... करने का समय है सजा देने का समय है ..... उस दर्दनाक दृश्य और आवाज़ को महसूस करते हुए हैवानो की दरिंदगी को रोकने का समय है ... बदलाव की जरूरत है ... ताकि कल फिर ये न दोहराया जाए !!!!
...... सुरभि ......
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