Tere Naam
मैं लिखता रहा हर रोज़ उसके नाम कुछ न कुछ
और वो जान कर भी अनजान अपरिचित होते चले गए
वो लोगों के बीच कहीं गम हुए और हम उन्हीं के नाम में खोते चले गए
बर्बाद कितना और होना बाकी है तेरा मेरे हमदम .. कुछ तो ख़याल कर
उसको ज़माने की रुसवाइयों से बचाने के लिए हम खुद ही अलग होते चले गए
Rj Surabhi
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