केवल एक शौक़ के नाम पर ज़िन्दगी तमाम कब तक
जब एक बच्चा ज़िद करता है तो उसे उसकी ही ग़लतियों का एहसास करवाया जाता है बस वही हुआ है
सिर्फ़ हमें हमारी ग़लतियों का एहसास करवाया जा रहा है, पर हमारे साथ हो रहे अन्याय का ज़िक्र तक नहीं हुआ ...
हुई तो बस तानाकसी, क्वालिटी के नाम पर रस्साकसी :)
"हम मुस्कुरा रहे थे और वो ताना दे रहे थे हमको
सुधार चाह ग़र रखते हैं आप भी ...... ख्वाहिश भी इसी बात की थोड़ी सी है हमको"
अरे अगर कोई क्वालिटी की डिमांड करता है तो उसकी ट्रेनिंग के लिए बुलाया जाता है, सारी ज़रुरत की चीज़ें मुहैया करवाई जाती हैं... और आमदनी का भी ख्याल रखा जाता है वो कहते हैं की :-
"जितनी शक्कर डालोगे उतनी मिठास पाओगे"
तो क्वालिटी की डिमांड करने से पहले आप उन साधनों को जुटाएँ जो हमारी पहुँच से थोड़ी सी दूर पर हैं ...
आपने तो ये हाल कर दिया की अब हम सभी ये सोचने पर मजबूर हो गए हैं .....
"आप उन लोगों से हमारी मिसाल रखते हैं"
जिनको या तो सब कुछ मिला या कुछ एक ख़ाक से मशहूर हो गए
हम तो आम से भी आम लोग हैं जनाब.. अक्ल से भी हम दूर गए लगते हैं
"तभी हम आम लोग ज़रूरतों के समय आपका चेहरा जो तकते है"
किसी का दिल दुखाना या ताना कसना न तो हम कलाकारों का काम है न ही हमारी हिम्मत हम तो बस उस न्याय की तलाश में हैं .. जिसके बाद हमें भी एक बड़ी संस्था का हिस्सा होने पर नाज़ होगा...
जिनको या तो सब कुछ मिला या कुछ एक ख़ाक से मशहूर हो गए
हम तो आम से भी आम लोग हैं जनाब.. अक्ल से भी हम दूर गए लगते हैं
"तभी हम आम लोग ज़रूरतों के समय आपका चेहरा जो तकते है"
किसी का दिल दुखाना या ताना कसना न तो हम कलाकारों का काम है न ही हमारी हिम्मत हम तो बस उस न्याय की तलाश में हैं .. जिसके बाद हमें भी एक बड़ी संस्था का हिस्सा होने पर नाज़ होगा...
आख़िर इस महंगाई के दौर में कब तक और कैसे केवल एक शौक़ के नाम पर ज़िन्दगी को यूँ ही तमाम कर दें
"सुरभि - सुर"
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