मन चूड़ियों की खनक सा - RJSURABHISAXENA

मन चूड़ियों की खनक सा


भटक रहा है मन कुछ ढूंढ़ता हुआ सा, 
कंगन की चमचम, चूड़ियों की खनक सा
तेरी बाहों का किनारा, मेरे प्यार की धनक सा ..

बस भटक रहा है मन कुछ खोजता हुआ सा
मन की हरेक गली में एक शोर सा उठा है...

तनहाइयों में भी एक हिलोर सा उठा है
बस बाँध दो इसे तुम अपने बाजुओं में, 

चंचल चपल है जो मन शीतल लहर सा.. 

3 comments:

  1. अहसासों का बहुत अच्छा संयोजन है ॰॰॰॰॰॰ दिल को छूती हैं पंक्तियां ॰॰॰॰ आपकी रचना की तारीफ को शब्दों के धागों में पिरोना मेरे लिये संभव नहीं

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  2. कुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।

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