मैं तो एक पराई थी - RJSURABHISAXENA

मैं तो एक पराई थी

मेरे जाने का ग़म मुझ से ज्यादा तुझ में देखा, उस ऱोज मेरी विदाई थी
आँखें नम थी, सब कुछ छूटा , साथ भी टूटा , वो भी एक जुदाई थी
सब छोड़ छाड़ के आई भी मैं,कुछ दूर तेरे आने की हिम्मत कैसे होती,मैं तो एक पराई थी
हर रिश्ते का मान रखा,तुझ को मैंने मन में बसाया ऐसे ही बस, अपनी प्रीत छुपायी थी

1 comment:

RJ Surabhii Saxena. Powered by Blogger.