मैं तो एक पराई थी
मेरे जाने का ग़म मुझ से ज्यादा तुझ में देखा, उस ऱोज मेरी विदाई थी
आँखें नम थी, सब कुछ छूटा , साथ भी टूटा , वो भी एक जुदाई थी
सब छोड़ छाड़ के आई भी मैं,कुछ दूर तेरे आने की हिम्मत कैसे होती,मैं तो एक पराई थी
हर रिश्ते का मान रखा,तुझ को मैंने मन में बसाया ऐसे ही बस, अपनी प्रीत छुपायी थी
आँखें नम थी, सब कुछ छूटा , साथ भी टूटा , वो भी एक जुदाई थी
सब छोड़ छाड़ के आई भी मैं,कुछ दूर तेरे आने की हिम्मत कैसे होती,मैं तो एक पराई थी
हर रिश्ते का मान रखा,तुझ को मैंने मन में बसाया ऐसे ही बस, अपनी प्रीत छुपायी थी
क़ाबिले-तारीफ़ है।
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