अस्तित्व की तलाश
अस्तित्व की तलाश में ....मंजिल को ढूंढता ये मन
ख़ुद को खोजता ये मन .......कस्तूरी की तरह ...
जाने कहाँ चला जा रहा है ....किसी की तलाश में ..
कौन सी दिशा में रहता है तू
कौन से घर में बसता है तू
कभी तो सामने भी आ जा ऐ मेरे रहबर ...
पकड़ना चाहती हूँ मैं तुझे ......तू है सिंदूरी शाम की तरह ...
ख़ुद को खोजता ये मन .......कस्तूरी की तरह ...
जाने कहाँ चला जा रहा है ....किसी की तलाश में ..
कौन सी दिशा में रहता है तू
कौन से घर में बसता है तू
कभी तो सामने भी आ जा ऐ मेरे रहबर ...
पकड़ना चाहती हूँ मैं तुझे ......तू है सिंदूरी शाम की तरह ...
बहुत सुंदर...लिखते रहें...
ReplyDeleteबहुत सुंदर, दिल से निकली रचना ।
ReplyDeleteये क्या अफ़साना है,
ReplyDeleteदिल को दिल की बात समझाना है
तेरे साथ देखे जो सपने जीने के
वो कभी तो जी लूँ ..बस सोचता ये दीवाना है
sur