अस्तित्व की तलाश - RJSURABHISAXENA

अस्तित्व की तलाश

अस्तित्व की तलाश में ....मंजिल को ढूंढता ये मन
ख़ुद को खोजता ये मन .......कस्तूरी की तरह ...
जाने कहाँ चला जा रहा है ....किसी की तलाश में ..
कौन सी दिशा में रहता है तू
कौन से घर में बसता है तू
कभी तो सामने भी आ जा ऐ मेरे रहबर ...
पकड़ना चाहती हूँ मैं तुझे ......तू है सिंदूरी शाम की तरह ...

3 comments:

  1. बहुत सुंदर...लिखते रहें...

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  2. बहुत सुंदर, दिल से निकली रचना ।

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  3. ये क्या अफ़साना है,
    दिल को दिल की बात समझाना है
    तेरे साथ देखे जो सपने जीने के
    वो कभी तो जी लूँ ..बस सोचता ये दीवाना है
    sur

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