चितवन
हर साज़ साज़ आवाज़ बन तुम मेरे ज़िगर के पार चले
हर राग रंग मधुस्वांस बन तुम मेरे मन के अथाह चले
सूरज भी न जहाँ पहुंचे उस मन के चंचल कोने में
कवि की भांति आन बसे बस ठहर गए ......
लो मेरे रग रग में ...इस मन में और नयन में इस चितवन में तुम बस तुम समा चले
हर राग रंग मधुस्वांस बन तुम मेरे मन के अथाह चले
सूरज भी न जहाँ पहुंचे उस मन के चंचल कोने में
कवि की भांति आन बसे बस ठहर गए ......
लो मेरे रग रग में ...इस मन में और नयन में इस चितवन में तुम बस तुम समा चले
Post a Comment