Donate Cotton's clothes,आपके आसपास की गरीब स्त्रियों को सूती पुराना कपड़ा दें ताकि वे माहवारी में इस्तेमाल कर सकें*
*आपके आसपास की गरीब स्त्रियों को सूती पुराना कपड़ा दें ताकि वे माहवारी में इस्तेमाल कर सकें*
* आदरणीय अंशु गुप्ताजी ‘कौन बनेगा करोङपति’ कार्यक्रम में आये थे।
‘गूंज goonj संस्था के संस्थापक है जो देश के उपेक्षित तबके के लिए बेहद सराहनीय काम कर रही है।*
*अमिताभ बच्चनजी से बात करते हुए उन्होंने कुछ बातें कही जो तब से अब तक मेरे कानों में सीटी की तरह गूंज रही है। सच कहुंगी कि उनकी कही बातों पर में विश्वास नहीं कर पाई।*
*इसलिए आज सुबह से अभी तक मैंने उनकी बातों की सत्यता की जाँच करने का बीङा उठाया। मैं मेरे घर में काम करने वाली दीदी से लेकर मेरे आसपास स्थित घरों में मौजुद सभी कामवालियों का इस विषय पर साक्षात्कार लेने पहुँच गई। इतना ही नहीं घर के सामने से गुजरती एक भीखारिन का भी मैंने साक्षात्कार ले ही लिया।*
*मैं उन्हें झुठा साबित करके स्वयं को आत्मिक संतुष्टि देना चाहती थी किंतु यहाँ तो जो निकलकर सामने आया वह कल्पनातीत था। आपको लग रहा होगा मैं क्यों पहेलियाँ बुझा रही हूँ? क्या करूँ? आखिरकार मैं भी तो हूँ तो एक भारतीय स्त्री ही ना। कैसे इन विषयों पर खुलकर लिख दूँ जिन पर आज भी अपने ही घर के पुरुष वर्ग के सामने बात करने में जुबाब काँपती है। खैर लिखने का बीङा उठाया है तो लिखना ही पङेगा। हाँ तो किसी गरीब का जब ख्याल मन में आता है तो हमें सामान्य तौर पर उसके तन को छिपाने की कोशिश करते फटे वस्त्र और अंतङियाँ निकला पेट ही नजर आता है। किंतु कल मैंने जाना कि इससे भी बङी एक आवश्यकता है। वह आवश्यता है सेनेटरी नेपकिन की। रुकिये, चौंकिये मत। मैं आपको बताती हूँ कैसे?*
*क्या कभी हमने सोचा है कि जिन्हें तन ढकने के लिए ही वस्त्र नसीब नहीं होते वे महिलाएँ माहवारी के समय क्या इस्तेमाल करती होगी? किसी और का मैं नहीं जानती किंतु मैंने कभी नहीं सोचा था। मैं गरीबों को भोजन, कपङे, दवाई आदि देकर स्वयं के दायित्वों की इति श्री मान लेती थी। अनाथ आश्रम में लङकियों के हाथ में कपङे पकङाते हुए आत्मिक संतुष्टि का अनुभव कर लेती थी। किंतु सेनेटरी नेपकिन..............हम महंगे पेड काम में लेते हैं। हमारी मम्मी-दादी कपङा काम में लेती थी।*
*आज भी कुछ मध्यमवर्गीय घरों में काम में लिया जाता होगा। किंतु उनका क्या जिनके पास पहनने के लिए ही कपङा नहीं होता। वे किस तरह से प्रति महीने चार से सात दिन निकालती है? अंशुजी ने बताया था कि ऐसी महिलाएँ............क्या कहूँ............राख, गोबर, प्लास्टिक, मिट्टी या वह कोई भी वस्तु जो तरलता को सोख सके का इस्तेमाल करने के लिए मजबूर है।*
*मैंने अपने आस-पास विश्लेषण किया तो पाया इन सब के साथ और भी अमानवीयता इन्हें भोगनी पङती है। ये 11 से 15 वर्ष की बच्चियाँ और औरतें अपने घर के पिछवाङे में घंटों तक नहीं तीन से चार दिन तक बैठे रहने को मजबूर होती है। इनका स्कूल (यदि दोपहर के भोजन के लालच में जाती हो), काम (मजदूरी) सब छूट जाता है। जिन्हें जाना ही पङता है वे विशेष अंडर पेंट के आकार में ढाली गई प्लास्टिक की थैलियों का इस्तेमाल करती है*
*ताकि भीतर ही भीतर वे कैसे भी नरक से गुजरे बाहरी तौर पर वे पाक साफ ही नजर आये। ये थैलियाँ भी ये हमारे फेंके कचरे में से बिनकर लेकर जाती है।*
*कभी कभी सफाई आदि करते समय या कपङे धोते समय दो –चार घंटे तक लगातार हाथ गिले रहने से उंगलियों में सनसनाहट हो जाती है। उनका क्या जिनके गुप्तांग घंटों गंदगी में रहते हैं? तो फिर क्यों विश्व में सबसे अधिक गर्भाषय केसंर से होने वाली मौतें भारत में न हो? एक औरत को माँ बनने का सुख देने वाली इस मुख्य प्राकृतिक प्रकिया से जुझने का यह सच बहुत भयावह है।*
*अब सवाल यह है कि मैं यह सब यहाँ क्यों लिख रही हूँ? क्योंकि
किंतु मैं यह भी जानती हूँ कि सोशल मिडिया का इस्तेमाल करने वाले इतने अमीर है कि अपने घर में काम करने वाले तबके एवं सङक पर बेघर घूमती महिलाओं की कम से कम अपने घर में मौजूद फटे पुराने कपङे देकर मदद कर सकते हैं। उन कपङों को देकर जो हमारे बिल्कुल काम नहीं आते। कदाचित् घर में पोंछा लगाने के लिए भी नहीं।*
*किसी अनाथ आश्रम जाने से पहले या गरीब को कपङे देते समय हम फटे हुए कपङे एक तरफ कर देते हैं। किंतु अब हम यदि उनमें से कोटन कपङे हो तो उन्हें भी अपने साथ लेकर जाये। और थोङी अधिक मदद करना चाहे तो उन कपङों को सेनेटरी नेपकिन के रूप में दर्जी से बनवा भी सकते हैं जिन्हें ये लाचार महिलाएँ और बच्चियाँ धोकर बार-बार इस्तेमाल कर सकती है। ये सो फिसदी उनकी सेहत के लिए फायदेमंद होंगे। उन्हें राख, मिट्टी आदि एवं घर के पिछवाङे के एक कौने का घंटों फिर दिनों तक आसरा नहीं खोजना पङेगा। जिनकी प्रतिदिन की कमाई से घर चलता है उनके घर में भी फिर हर दिन चुल्हा जलने के रास्ते निकल जायेंगे।*
*मेरा मात्र इतना ही निवेदन है कि हम धन खर्च करके इस कार्य में भागीदारी दे या न दे किंतु हमारे घर के फालतु कपङे को फालतु समझकर कतई न फैंके। एक और बात...........पुराने कपङों के बदले बर्तन लेने का चलन बहुत आम है। करबद्ध निवेदन है पुराने कपङे किसी गरीब के तन पर सजाने के लिए काम में आय़ेगें तो उनके चेहरों पर आई चमक उन बर्तनों की चमक से कहीं अधिक तेज होगी जो हजारों खर्च किये कपङों को देकर सैकङों के खरीदे बर्तनों में होंगी।*
*कभी कभी सफाई आदि करते समय या कपङे धोते समय दो –चार घंटे तक लगातार हाथ गिले रहने से उंगलियों में सनसनाहट हो जाती है। उनका क्या जिनके गुप्तांग घंटों गंदगी में रहते हैं? तो फिर क्यों विश्व में सबसे अधिक गर्भाषय केसंर से होने वाली मौतें भारत में न हो? एक औरत को माँ बनने का सुख देने वाली इस मुख्य प्राकृतिक प्रकिया से जुझने का यह सच बहुत भयावह है।*
*अब सवाल यह है कि मैं यह सब यहाँ क्यों लिख रही हूँ? क्योंकि
किंतु मैं यह भी जानती हूँ कि सोशल मिडिया का इस्तेमाल करने वाले इतने अमीर है कि अपने घर में काम करने वाले तबके एवं सङक पर बेघर घूमती महिलाओं की कम से कम अपने घर में मौजूद फटे पुराने कपङे देकर मदद कर सकते हैं। उन कपङों को देकर जो हमारे बिल्कुल काम नहीं आते। कदाचित् घर में पोंछा लगाने के लिए भी नहीं।*
*किसी अनाथ आश्रम जाने से पहले या गरीब को कपङे देते समय हम फटे हुए कपङे एक तरफ कर देते हैं। किंतु अब हम यदि उनमें से कोटन कपङे हो तो उन्हें भी अपने साथ लेकर जाये। और थोङी अधिक मदद करना चाहे तो उन कपङों को सेनेटरी नेपकिन के रूप में दर्जी से बनवा भी सकते हैं जिन्हें ये लाचार महिलाएँ और बच्चियाँ धोकर बार-बार इस्तेमाल कर सकती है। ये सो फिसदी उनकी सेहत के लिए फायदेमंद होंगे। उन्हें राख, मिट्टी आदि एवं घर के पिछवाङे के एक कौने का घंटों फिर दिनों तक आसरा नहीं खोजना पङेगा। जिनकी प्रतिदिन की कमाई से घर चलता है उनके घर में भी फिर हर दिन चुल्हा जलने के रास्ते निकल जायेंगे।*
*मेरा मात्र इतना ही निवेदन है कि हम धन खर्च करके इस कार्य में भागीदारी दे या न दे किंतु हमारे घर के फालतु कपङे को फालतु समझकर कतई न फैंके। एक और बात...........पुराने कपङों के बदले बर्तन लेने का चलन बहुत आम है। करबद्ध निवेदन है पुराने कपङे किसी गरीब के तन पर सजाने के लिए काम में आय़ेगें तो उनके चेहरों पर आई चमक उन बर्तनों की चमक से कहीं अधिक तेज होगी जो हजारों खर्च किये कपङों को देकर सैकङों के खरीदे बर्तनों में होंगी।*
*मैं नहीं जानती यह मुझे लिखना चाहिए था या नहीं। किंतु मैंने लिखा है। फिर निवेदन कर रही हूँ किसी से प्रत्यक्ष इस बारे में बात करने में आपको झिझक हो तो यह लेख उसे जरुर भेजे। भले आप इसे अपनी भाषा में* लिखकर *सबसे बाँटे। किंतु कृपया यह एक और दान प्रारम्भ करे। हमारे ये छोटे-छोटे प्रयास वुमेन इम्पावरमेंट के साथ देश के स्वास्थ्य सुधार में बहुत बङा योगदान देंगे।*
*मुझे इस विषय पर जानकारी हासिल करने में आज पूरा दिन लग गया। अभी देर हो चुकी है किंतु मेरा मन नहीं मान रहा इसलिए मैं अभी ही इसे आपके साथ साझा कर रही हूँ।*
*फिर से निवेदन है अपने घर का एक भी कपङा फालतु समझकर न फैंके*
*किसी के लिए यह फालतु कपङा निरोग रहने की रामबाण औषधि है*.........
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