नारी अस्मिता पर कविता - RJSURABHISAXENA

नारी अस्मिता पर कविता

नारी अस्मिता पर डॉ अनु सपन की एक रचना

इस तरह से मुझे आप मत देखिये...
भाव सूची नही हूँ मैं बाजार की,
मेरी हर साँस में एक उपन्यास है...
कोई कतरन नही हूँ मैं अख़बार की..!
इस तरह से मुझे....!!

सिर्फ चेहरा ही सब देखते है यहां...
नापते है कहाँ मन की गहराइयाँ..?
रूप रस के ये लोभी नही जानते...
मन में बसती है मानस की चौपाईयां,
मूर्तियां पूजना मेरी आदत नही...
मैं पुजारिन पसीनें के किरदार की,
मेरी हर साँस में एक उपन्यास है...
कोई कतरन नही हूँ मैं अख़बार की..!
इस तरह से मुझे......!!

मैं कुहासे में लिपटी हुई भौर हूँ...
कोई सूरज मिले मैं भी खिल जाउंगी,
हूँ नदी भावना की उमड़ती हुई...
एक दिन अपने सागर से मिल जाउंगी,
प्यार मैंने किया पुरे मन से किया...
फ़िक्र मुझको नही जीत की हार की,
मेरी हर साँस में एक उपन्यास है...
कोई कतरन नही हूँ मैं अख़बार की...!
इस तरह से मुझे.......!!

देवियों की तरहा जिनको पूजा गया...
या सभाओं में जिनको नचाया गया,
एक औरत को औरत न समझा गया...
इक शमा की तरह से जलाया गया,
मैं धरा हूँ....धरम है सहनशीलता...
कोई वस्तु नही हूँ मैं व्यापार की,
मेरी हर साँस में एक उपन्यास है...
कोई कतरन नही हूँ मैं अख़बार की....!
इस तरह से मुझे......!!

नर्क की खान समझो न नारी को तुम...
स्वर्ग पाने का वो एक सोपान है,
उसके काजल को लेकर है काली निशा...
उसकी लाली से जगमग ये दिनमान है,
उसका आंसू समंदर पे भारी पड़े...
नारी शक्ति है....शोभा है संसार की,
मेरी हर साँस में एक उपन्यास है...
कोई कतरन नही हूँ मैं अख़बार की...!
इस तरह से मुझे.....!!

*(डॉ.अनु सपन भोपाल)*

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