फ़कीर और फ़िक्र - RJSURABHISAXENA

फ़कीर और फ़िक्र

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  एक फकीर परमात्मा की मस्ती मे रहता था। मस्ती के कारण उसका शरीर इतना बलशाली हो गया था कि एक दिन उसने बादशाह के हाथी की पूँछ पकड कर रोक दिया। बादशाह उसके शरीर की शक्ति को समझ गया। बादशाह ने फकीर को मन्दिर मे प्रतिदिन दीपक जलाने के लिए राजी कर लिया।



  दीपक जलाने के एवज मे फकीर को शाही भोजनालय से सुस्वादु भोजन मिलने लगा। एक माह बाद बादशाह हाथी पर बैठकर फकीर के सामने पहुँचा और उससे कहा- बाबा हाथी की पूँछ पकड कर देखो। फकीर ने पूँछ पकडी कि हाथी के साथ घिसटने लगा।बादशाह यह दृश्य देखकर मुस्करा उठा। उसने कहा- बाबा जब तुम रूखा-सूखा खाते थे, तब हाथी की पूँछ पकड कर रोक लेते थे। अब तरबतर माल खाकर भी वह शक्ति कहाँ लुप्त हो गयी।



  फकीर ने जबाब दिया- तब रूखा-सूखा खाता था, किन्तु फिक्र से दूर रहता था। अब तर माल खाता हूँ, किन्तु दीपक जलाने की पांबदी थी, फिक्र ने मेरे शरीर का बल निचोड डाला है।
इसलिए, संतो के समझाने का  भाव है कि हमे हर प्रकार का फिक्र छोडकर केवल नाम के भजन-सुमिरन की तरफ ही अपने ध्यान को रखना है, इसी मे हमारी भलाई है जी।

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