बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना पर एक नज़र डालते हैं ....
जन-धन योजना, मेक इन इंडिया और स्वच्छ भारत अभियान के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 जनवरी 2015 को हरियाणा के पानीपत में बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना शुरू की है।
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ,स्वास्थ्य मंत्रालय और परिवार कल्याण मंत्रालय एवं मानव संसाधन विकास की एक संयुक्त पहल है...
बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ योजना, देश में बालिकाओं को संरक्षण और सशक्त करने के लिए बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना की शुरुआत 22 जनवरी 2015 को की गई है और जिसे निम्न लिंगानुपात वाले 100 जिलों में प्रारंभ किया गया है।
सभी राज्यों / संघ शासित क्षेत्रों को कवर 2011 की जनगणना के अनुसार निम्न बाल लिंगानुपात के आधार पर प्रत्येक राज्य में कम से कम एक ज़िले के साथ 100 जिलों का एक पायलट जिले के रुप में चयन किया गया है
100 करोड़ रुपए के शुरुआती कॉर्पस के साथ यह योजना देशभर के 100 जिलों में शुरू की गई। हरियाणा के 12 जिले चुने गए है : रेवाड़ी, महेंद्रगढ़, भिवानी, झज्जर, अंबाला, कुरुक्षेत्र, सोनीपत, रोहतक, करनाल, कैथल, पानीपत और यमुना नगर। जहां बाल लिंगानुपात (सीएसआर) बेहद कम है
इस योजना का लक्ष्य लड़कियों को पढ़ाई के जरिए सामाजिक और वित्तीय तौर पर आत्मनिर्भर बनाना है। महिलाओं के कल्याण के लिए भारत सरकार ने एक बेहतरीन पहल की है।
इस योजना की जरूरत क्यों?
2011 की ताजा जनगणना के अनुसार 0 से 6 वर्ष आयु समूह में सीएसआर (बाल लिंगानुपात) घटने का खुलासा हुआ है।
आंकड़ें बताते हैं कि 1,000 लड़कों पर लड़कियों की संख्या घटकर 919 रह गई है। 2001 में 1,000 लड़कों पर 927 लड़कियां थी।
पुत्र की चाह में अजन्मे बच्चे के लिंग का पता लगाने वाले आधुनिक उपकरणों की उपलब्धता से कन्या भ्रूण हत्या के मामले बहुत तेजी से बढ़े हैं।
समाज में गहरे तक यह बात बैठी हुई है कि लड़कियों के साथ बड़ी जिम्मेदारी आती है। इन कारणों से लिंगानुपात को नुकसान पहुंचा है। जन्म हो जाने के बाद भी लड़कियों के साथ भेदभाव नहीं थमता। स्वास्थ्य, पोषण और शिक्षा की जरूरतों को लेकर उनके साथ कई तरह से पक्षपात होता है।
आज भी एक बेटी के जन्म से पहले ही उनके अधिकारों का हनन शुरू हो जाता है।
समन्वित रूप से, हमारे समाज में महिला सशक्तिकरण से समाज को विश्वास और अवैज्ञानिक प्रथाओं के पिछड़ेपन से मुक्ति मिलेगी।
अंधविश्वासी मान्यताओं और प्रथाओं से निकलने के लिए ग्रामीणों के बीच शिक्षा और ज्ञान की नयी किरण को पहुँचाने के लिए आज मीडिया और संचार तरीकों का पूरी तरह से इस्तेमाल करने की आवश्यकता है।
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान इसी लक्ष्य को हासिल करने, इसके बारे में जागरूकता फैलाने और बदलाव के लिए शुरू किया गया है।
मोदी ने क्या कहा
रोना रोते हुए कि हमारी मानसिकता अभी भी 18वीं सदी की है, प्रधानमंत्री ने बेटों और बेटियों के बीच भेदभाव खत्म करने की अपील की। उन्होंने कहा कि कन्या भ्रूण हत्या खत्म करने के लिए यह बेहद जरूरी है। मोदी ने बालिका भ्रूण हत्या में बराबरी से शामिल चिकित्सा बिरादरी को भी यह याद दिलाया कि उनकी चिकित्सा की शिक्षा जान बचाने के लिए है, लड़कियों की हत्या के लिए नहीं।
प्रधान मंत्री ने ‘सुकन्या समृद्धि अकाउंट’ की शुरुआत भी की, जिसका फायदा लड़कियों को मिलेगा। उन्होंने बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ थीम पर एक डाक टिकट भी जारी किया। इस मोके पर बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ की शपथ भी दिलाई।
बालिका भ्रूण हत्या रोकने के लिए आज पूरे समाज को लड़कियों के प्रति अपना नजरिया बदलने की जरूरत है।
सरकार ने यह नयी योजना कई लड़कियों को बचाने के लिए शुरू की है।
यह योजना न केवल लड़कियों बल्कि पूरे समाज के लिए एक वरदान है।
यह योजना न केवल लड़कियों बल्कि पूरे समाज के लिए एक वरदान साबित हो सकती है। इतना ही नहीं, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना ऐसे वक्त आई है जब देश महिलाओं की सुरक्षा से जुड़ी समस्याओं जैसे- दुष्कर्म और अन्य तरह के हमलों का सामना कर रहा है। सरकार ने यह दावा भी किया है कि गृह मंत्रालय बड़े शहरों में महिला सुरक्षा बढ़ाने की योजना पर 150 करोड़ रुपए खर्च करने वाला है।
केंद्रीय बजट में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय को सार्वजनिक परिवहन में महिलाओं की सुरक्षा की पायलट योजना के लिए 50 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं। यह एक स्वागत योग्य कदम हो सकता है क्योंकि इसके जरिए सिस्टम पर महिलाओं का भरोसा फिर से कायम किया जा सकता है।
यदि परियोजना दुर्जेय हो तो बेहतर शुरुआत और कार्यान्वयन के लिए कई सबसे प्रभावी तरीकों को गले लगाया जा सकता है। उदाहरण के तोर पर पश्चिम बंगाल में एक प्रणाली है, जिसमें बच्चे की शिक्षा के लिए एक निश्चित अंतराल के नकद पैसा ट्रांसफर किया जाता है। पंजाब में, गर्भवती लड़कियों को पहली तिमाही में ही रजिस्टर किया जाता है। ताकि अधिकारी भ्रूण हत्या के मामलों पर निगरानी रख सके। एक उदाहरण तमिलनाडु में भी है, जहां अम्मा बेबी केयर किट दी जाती है
हालांकि, यह पहल भले ही अक्लमंद नजर आती हो, कई लोग इसकी आलोचना भी कर रहे हैं। यह कहा जा रहा है कि पैसा आवंटित करने या योजनाएं शुरू करना काफी नहीं है। कानून में बदलाव करना पड़ेगा और लड़कियों को नुकसान पहुंचाने वालों को सजा देनी होगी। जमीनी स्तर पर लड़कियों के अधिकारों के बारे में और जागरूक किए जाने की आवष्यकता है।
धन्यवाद
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