जनकवि शैलेंद्र की 93वीं जयंती - 30 अगस्त 2016

सरल शब्दों में गहरी बात कहने में जनकवि शैलेंद्र के गीत एक अलग पहचान रखते हैं ... मज़दूरों और कामगारों के सच्चे मीत है शैलेंद्र के गीत ।
ये गीत मुहावरों और लोकोक्तियों की तरह हमारी ज़िंदगी में रच बस गए हैं ।।
शब्दों के शिल्पकार शैलेंद्र की रचना न्यौता और चुनौती काव्य संग्रह में संकलित 32 कविताएँ हिंदी साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं ।
शोषितों मज़दूरों के दर्द से जुड़ते हुए लोक जीवन पर बात कहने वाले शैलेंद्र को लोगों ने जनकवि बनाया है
शैलेंद्र के गीतों में साहित्य की ख़ुशबू और लोकजीवन की छवियाँ साफ़ झलकती नज़र आती हैं ।
सामाजिक सरोकारों के साथ साथ संगीतात्मकता उनके गीतों में ऐसे समायी है जैसे हवा प्रकृति में समायी है । खुशबु फूल में ।
30 अगस्त 1923 को रावलपिंडी जो अब पाकिस्तान में हैं में जन्मे शैलेंद्र का बचपन मथुरा में बीता ।
नौकरी की चाह में आप 1942 में रेलवे में बतौर फिटर भर्ती हुए ।
नौकरी की चाह में आप 1942 में रेलवे में बतौर फिटर भर्ती हुए ।
मार्क्सवादी फ़लसफ़े से प्रेरित कवि शैलेंद्र ने शोषण अन्याय और उत्पीड़न के ख़िलाफ़ जम कर आवाज़ उठाई .....
हर जोर ज़ुल्म की टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है जैसे कालजयी गीत की रचना की ।
अनेक शहीदों के प्रयास से जब अगस्त 1947 में देश आज़ाद हुआ और जब अपने लोगो के कमान संभाली और तब भी मज़दूरों की बदहाली कम न हुई । ख़ुशहाली की चाँदनी लोगो के घरों तक नहीं पहुँची अपने लोग ही पराये नज़र आने लगे तब शैलेंद्र में नेताओं को न्यौता कविता के माध्यम से मज़दूरों का हम बयां किया ....
लीडर जी परनाम तुम्हें हम मज़दूरों का ।
हो न्यौता स्वीकार तुम्हें हम मज़दूरों का ।
हो न्यौता स्वीकार तुम्हें हम मज़दूरों का ।
1948 तक शैलेंद्र ने अपनी एक सशक्त कवि की पहचान बना ली थी
इप्टा के नाटकों में उनके लिखे प्रेरक गीत हज़ारों लोगो के दिलो व् जुवां पर थे ।
फ़िल्म अभिनेता व निर्देशक राज कपूर ने शैलेंद्र को एक कवि सम्मेलन में जलता है पंजाब कविता गाते सुना । राजकपूर पहले से ही शैलेंद्र की कविता से परिचित थे । राज कपूर ने फिल्म आग के गीत लिखने को कहा जिसे शैलेंद्र ने ठुकरा दिया समय के चक्र ने उन्हें एक बार राज कपूर के समक्ष खड़ा कर दिया और तब रज कपूर ने फिल्म बरसात के गीत लिखने की जिम्मेदारी दी - बरसात में शैलेंन्द्र ने दो गीत लिखे
बरसात में हमसे मिले तुम सजन
और
पतली कमर है
और
पतली कमर है
इन दोनों गीतों ने यश और पैसो की बरसात कर दी शैलेंद्र के जीवन में ....
इप्टा के माध्यम से तो शैलेंद्र के गीत हज़ारो में ही पहुँचे थे पर 1951 में प्रदर्शित आवारा के गीतों ने शैलेंद्र को सफल लोकप्रिय व अंतराष्ट्रीय गीतकार बना दिया
आवारा हूँ शीर्षक गीत उस दौर में भारत के साथ साथ चीन, सोवियत संघ, अरब जैसे देशों में ख़ासा मशहूर हुआ
1955 में आयी श्री 420 का मेरा जूता है जापानी गीत में देश प्रेम । सरलता । मानवीय मूल्य । सब मिलते हैं
तो वहीँ फिल्म बूट पोलिश के गीत नन्हे मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है । मुट्ठी में है तक़दीर हमारी जैसा कर्म प्रधान गीत रचकर जनकवि होने का प्रमाण दिया शैलेंद्र ने ।।।।
तो वहीँ फिल्म बूट पोलिश के गीत नन्हे मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है । मुट्ठी में है तक़दीर हमारी जैसा कर्म प्रधान गीत रचकर जनकवि होने का प्रमाण दिया शैलेंद्र ने ।।।।
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