प्रेम को पाने की तीव्र अभिलाषा
मन में बसी किसी भी मन पसंद चीज़ को पाने की तीव्र अभिलाषा को हम कामना, धुन, कामुकता, या वासना कह सकते हैं .....
किसी को पैसे की तो किसी को शोहरत की चाह या धुन होती हैं, कहीं न कहीं ये भी, ये भी कामुकता और वासना से ही जुड़े हुए व्यवहार हैंफिर क्यों किसी के लिए किसी के प्रेम और प्रेम भावना को ही ग़लत तरीके से कामुकता या वासना के साथ जोड़ कर देखा जाता है ??
ये एक ऐसा सवाल है, जो हर आदमी की ज़िन्दगी से जुड़ा हुआ है .... जबकि प्रेम की ज़रूरत सभी को हैं, किसी को प्रेम करना, उसकी धुन में रहना अपने आप में ही आनंदित करने वाला पल होता है ...
प्रेम के साथ कामुकता या वासना की परिभाषा को अगर हम और आप समझ लें तो सारी दुविधाएँ ही खत्म हो जाएँ - प्रेम और प्रेम की कामना जीवन में यूँ हैं जैसे खाने में नमक और मसाला…
बिना प्रेम और प्रेमालाप के मानव जीवन संभव ही नहीं, मानव जीवन को समृद्ध बनाने के लिए ज़रूरी है कला व संस्कृति...
कला, संस्कृति और सभ्यता को एक उचित दिशा देने के लिए प्रेम तथा प्रेम में अभिलाषा यानि कामना व धुन का होना बेहद आवश्यक है जिसे हम जब भी प्रेम से जोड़ कर देखते हैं तब वासना का नाम दे देते हैंतो यहाँ खुले और साफ़ शब्दों में एक ही बात कही जा सकती हैं की यही प्रेम और प्रेमालाप जीवन को जीने योग्य बनाता है और एक इंसानी जीवन भी प्रदान करता है !!
ऐसा माना जाता है की भारतीय लोगों में कामुकता, धुन अधिक दिखाई देती हैं, और उसका सार मुझे यही लगता है की हम प्रेम को अधिक तव्वजो देते हैं
प्रेम हमारी मिटटी में हैं, हमारे रग रग में हैं, हमारे रंगीन कपड़े, हमारे संगीत और नृत्य, रस्में और समारोह और आपसी संबंधों में भी हम प्रेम को प्रथम स्थान पर रखते हैं -
इसीलिए प्रेम के प्रति एक धुन रखना या लगाव रखना स्वाभाविक है…. प्राचीन काल की बात करें तो देखते हैं की उस दौर में हम अपने सभी पहलुओं में कामुकता, धुन, अभिलाषा या वासना लिए हुए थे, जो बदस्तूर आज भी जारी है......
एक कलाकार हमेशा से कामुक, धुनी, अभिलाषी रहा है ... जब जहाँ से उसे प्रेरणा मिली वो उसी के प्रेम में आनंदित हो गया..ऐसा लगता है मानो ये ईश्वर प्रद्दत हो क्योकिं अब जब हम प्राचीन इमारतों और कलाकृतियों को देखते है तो मन खुश हो जाता है
अगर वो कलाकार उस दौर में ये सब नहीं रचता तो हमें संस्कृति के नाम पर क्या प्राप्त हुआ होता,
मानवीय भावों को जाग्रत कर देने वाले मंदिर हमारे देश का गौरव है .. जिसमें उकेरी गयी मूर्तियाँ उदाहरण है कला और काम के प्रतीक का संस्कृत में भी काम और प्रेमालाप को एक नए स्वरुप में उसी दौर में प्रस्तुत किया गया था जहाँ पर उसे नाम दिया गया - कामसूत्र
कामसूत्र जो कि संगम है प्रेम ...
प्रेम में आध्यात्मिकता के साथ आकर्षक प्रेमालाप व कामना और वासना का जो आध्यात्मिकता के चरम जो छूता हैं, तो यहाँ सोचने वाली बात ये भी है की, जिसनें इन कलाकृत्यों का चित्रण किया उन्होंने किससे प्रेम किया, किस भाव से किया, प्रेम में समर्पण कितना रहा ..
प्रेम की प्रेरणा का चरम यहाँ तक पहुंचा कि, वो “कलाकार” समस्त संसार को न मिटने वाली धरोहर दे गया – सिर्फ़ एक कलाकार, जिसे शायद उस दौर में न जाने कितने ही द्वन्द सहने पड़े होंगें??
दुनिया भर में महान कलाकारों ने कला को असल रूप को चित्रित किया है, कलाकार का धर्म है असलियत से जुड़ कर सच्चा स्वरुप लोगों तक समाज तक पहुँचाएँ, उनके अनुसार मानव रूप से जुड़ी कोई भी बात शर्मनाक नहीं है, शर्म की बात तो तब है जब आपकी नज़र शर्मनाक है..
कामुकता और वासना का अर्थ अश्लीलता नहीं हैं,
कामुकता और वासना का अर्थ है किसी भी वस्तु या किसी से भी प्रेम का आकर्षक होना, उसके लिए एक लगाव या धुन होना, ये प्रेम और आकर्षक ही इंसान को अध्यात्म और प्रेम से जोड़ता है, समझने वाली बात है की संपूर्ण संसार इसी प्रेम भावना पर टिका हुआ है,
हाँ ये और बात है की हर दौर में इन शब्दों का दमन तभी होता है जब सोच को गलत तरीके से सोचा व समझा जाता है और इसे दैनिक हिंसा के रूप में बदल कर विकृति बना दिया जाता है....
Written by #SURABHI SAXENA
किसी को पैसे की तो किसी को शोहरत की चाह या धुन होती हैं, कहीं न कहीं ये भी, ये भी कामुकता और वासना से ही जुड़े हुए व्यवहार हैंफिर क्यों किसी के लिए किसी के प्रेम और प्रेम भावना को ही ग़लत तरीके से कामुकता या वासना के साथ जोड़ कर देखा जाता है ??
ये एक ऐसा सवाल है, जो हर आदमी की ज़िन्दगी से जुड़ा हुआ है .... जबकि प्रेम की ज़रूरत सभी को हैं, किसी को प्रेम करना, उसकी धुन में रहना अपने आप में ही आनंदित करने वाला पल होता है ...
प्रेम के साथ कामुकता या वासना की परिभाषा को अगर हम और आप समझ लें तो सारी दुविधाएँ ही खत्म हो जाएँ - प्रेम और प्रेम की कामना जीवन में यूँ हैं जैसे खाने में नमक और मसाला…
बिना प्रेम और प्रेमालाप के मानव जीवन संभव ही नहीं, मानव जीवन को समृद्ध बनाने के लिए ज़रूरी है कला व संस्कृति...
कला, संस्कृति और सभ्यता को एक उचित दिशा देने के लिए प्रेम तथा प्रेम में अभिलाषा यानि कामना व धुन का होना बेहद आवश्यक है जिसे हम जब भी प्रेम से जोड़ कर देखते हैं तब वासना का नाम दे देते हैंतो यहाँ खुले और साफ़ शब्दों में एक ही बात कही जा सकती हैं की यही प्रेम और प्रेमालाप जीवन को जीने योग्य बनाता है और एक इंसानी जीवन भी प्रदान करता है !!
ऐसा माना जाता है की भारतीय लोगों में कामुकता, धुन अधिक दिखाई देती हैं, और उसका सार मुझे यही लगता है की हम प्रेम को अधिक तव्वजो देते हैं
प्रेम हमारी मिटटी में हैं, हमारे रग रग में हैं, हमारे रंगीन कपड़े, हमारे संगीत और नृत्य, रस्में और समारोह और आपसी संबंधों में भी हम प्रेम को प्रथम स्थान पर रखते हैं -
इसीलिए प्रेम के प्रति एक धुन रखना या लगाव रखना स्वाभाविक है…. प्राचीन काल की बात करें तो देखते हैं की उस दौर में हम अपने सभी पहलुओं में कामुकता, धुन, अभिलाषा या वासना लिए हुए थे, जो बदस्तूर आज भी जारी है......
एक कलाकार हमेशा से कामुक, धुनी, अभिलाषी रहा है ... जब जहाँ से उसे प्रेरणा मिली वो उसी के प्रेम में आनंदित हो गया..ऐसा लगता है मानो ये ईश्वर प्रद्दत हो क्योकिं अब जब हम प्राचीन इमारतों और कलाकृतियों को देखते है तो मन खुश हो जाता है
अगर वो कलाकार उस दौर में ये सब नहीं रचता तो हमें संस्कृति के नाम पर क्या प्राप्त हुआ होता,
मानवीय भावों को जाग्रत कर देने वाले मंदिर हमारे देश का गौरव है .. जिसमें उकेरी गयी मूर्तियाँ उदाहरण है कला और काम के प्रतीक का संस्कृत में भी काम और प्रेमालाप को एक नए स्वरुप में उसी दौर में प्रस्तुत किया गया था जहाँ पर उसे नाम दिया गया - कामसूत्र
कामसूत्र जो कि संगम है प्रेम ...
प्रेम में आध्यात्मिकता के साथ आकर्षक प्रेमालाप व कामना और वासना का जो आध्यात्मिकता के चरम जो छूता हैं, तो यहाँ सोचने वाली बात ये भी है की, जिसनें इन कलाकृत्यों का चित्रण किया उन्होंने किससे प्रेम किया, किस भाव से किया, प्रेम में समर्पण कितना रहा ..
प्रेम की प्रेरणा का चरम यहाँ तक पहुंचा कि, वो “कलाकार” समस्त संसार को न मिटने वाली धरोहर दे गया – सिर्फ़ एक कलाकार, जिसे शायद उस दौर में न जाने कितने ही द्वन्द सहने पड़े होंगें??
दुनिया भर में महान कलाकारों ने कला को असल रूप को चित्रित किया है, कलाकार का धर्म है असलियत से जुड़ कर सच्चा स्वरुप लोगों तक समाज तक पहुँचाएँ, उनके अनुसार मानव रूप से जुड़ी कोई भी बात शर्मनाक नहीं है, शर्म की बात तो तब है जब आपकी नज़र शर्मनाक है..
कामुकता और वासना का अर्थ अश्लीलता नहीं हैं,
कामुकता और वासना का अर्थ है किसी भी वस्तु या किसी से भी प्रेम का आकर्षक होना, उसके लिए एक लगाव या धुन होना, ये प्रेम और आकर्षक ही इंसान को अध्यात्म और प्रेम से जोड़ता है, समझने वाली बात है की संपूर्ण संसार इसी प्रेम भावना पर टिका हुआ है,
हाँ ये और बात है की हर दौर में इन शब्दों का दमन तभी होता है जब सोच को गलत तरीके से सोचा व समझा जाता है और इसे दैनिक हिंसा के रूप में बदल कर विकृति बना दिया जाता है....
Written by #SURABHI SAXENA
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