मैं तो इश्क़ का मारा हूँ .....
फ़क़त दरो दीवार से बस जाते ग़र घर आँगन
तो दुनिया बसाने वाले, यहाँ तेरी ज़रूरत ही क्या होती ....
ये हसीन कभी दिल से चाह लेते सादी सी मोहब्बत को
तो ज़माने की भरी भीड़ में, तुमको बस मेरी ही कमी होती ....
यूँ तो कहते ही सुना तुमको, की मैं तो इश्क़ का मारा हूँ
होता ग़र ये तो मेरी मुस्कान, तेरे दिल तक खंज़र सी चुभी होती ...
#सुरभी
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