नीलकंठ हिम के आँचल में अपना राज बसाये हैं,
विषधर नंदी साथ में गौर संग बिठाये हैं
उज्जवल शशि ललाट पर, गंगा है सर पर बैठी
हाथ त्रिशूल, तन मृग छाला, खड़े कई हैं भेटीं
श्वेताम्बर , श्याम भया, तन पर भस्म सजाये हैं
अमृत की धरा जग को देकर, विष को गले के कंठ से ही तो
नीलकंठ कहलायें है ..
सुरभि "सुर"
Post a Comment