जाल - RJSURABHISAXENA

जाल

 
एक ऐसा जाल बुना तूने प्राणी जो सुलझ कभी न सकता था

जो उलझ गया एक बार कभी , उसे कोई नहीं सुलझा सकता था

बस किस्सा यहीं पे हुआ ख़त्म,

तुम अपने घर हम अपने घर

न हम दुखी न वो सुखी

अपने पैरों में तुने ख़ुद ही कांटे बोये है, उसे बटोर नही कोई सकता था

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