सफ़र
इस सुहाने मौसम में जब तय किया एक सफ़र आप तक पहुचनें का ..
दो गिलहरियाँ भागती देखी , एक कौवे का जोड़ा ढूंढ़ रहा था जैसे कुछ
कुछ गौरिया कलरव करती अपने घर को लौट रही थी
चहक चहक के , लहक लहक के दर अपने को लौट रही थी
हलकी बूंदा बांदी ने पेड़ों को फिर हरे रंग में रंग डाला
जो ताजी ताजी खुशबू थी वो मेरे मन को मोह रही थी
दो गिलहरियाँ भागती देखी , एक कौवे का जोड़ा ढूंढ़ रहा था जैसे कुछ
कुछ गौरिया कलरव करती अपने घर को लौट रही थी
चहक चहक के , लहक लहक के दर अपने को लौट रही थी
हलकी बूंदा बांदी ने पेड़ों को फिर हरे रंग में रंग डाला
जो ताजी ताजी खुशबू थी वो मेरे मन को मोह रही थी
सुन्दर अभिव्यक्ति...कम शब्दों में गहरी बात...हमेशा की तरह...
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