सफ़र - RJSURABHISAXENA

सफ़र

इस सुहाने  मौसम  में  जब  तय  किया  एक  सफ़र  आप  तक  पहुचनें  का ..
दो गिलहरियाँ  भागती  देखी , एक  कौवे  का  जोड़ा  ढूंढ़ रहा  था  जैसे  कुछ 
कुछ  गौरिया  कलरव  करती  अपने  घर  को  लौट  रही  थी 
चहक  चहक  के , लहक  लहक  के  दर  अपने  को  लौट  रही  थी 
हलकी  बूंदा  बांदी  ने  पेड़ों  को  फिर  हरे  रंग  में  रंग  डाला  
जो  ताजी  ताजी खुशबू  थी  वो  मेरे  मन  को  मोह  रही  थी 

1 comment:

  1. सुन्दर अभिव्यक्ति...कम शब्दों में गहरी बात...हमेशा की तरह...

    ReplyDelete

RJ Surabhii Saxena. Powered by Blogger.