संगीत.कॉम - RJSURABHISAXENA

संगीत.कॉम

सादगी के पर्दे में, नाज़ुक हया सी सच्चाई हो
चाँद की परछाई उतर आई हो जैसे झील में
रात के आँचल में ढली, तुम जैसे शफ़क की अंगडाई हो
सोचा भी न था, कब न जाने मेरे दिलबर मेरे दोस्त तुम
मेरे ख़्वाबों में पायल बजाती चली आई हो...


चाँद की उसी ख़ूबसूरत परछाई को उतार लाये है, हम आपके लिए आकाशवाणी के fm गोल्ड 106.4 मेगा हर्ट्ज़ पर आज संगीत.कॉम में आपके साथ हूँ मैं सुरभि

नमस्कार ….

संगीतकार आर.डी बर्मन के स्वरबद्ध किए गीतों की एक अपनी पहचान है। यूँ तो पंचम के बेशुमार रंग हैं, उन्हीं रंगों में से एक रंग के साथ शुरुआत करते हैं, आज के कार्यक्रम संगीत.कॉम की....


एक बेहद सुरीले और मीठे गीत के साथ। जी हाँ , इस गीत में घुला है, पंचम के भारतीय शास्त्रीय संगीत का रंग। लता मंगेशकर और मन्ना डे की आवाज़ों में फ़िल्म ’जुर्माना’ के इस बेहद कर्णप्रिय गीत को,आनंद बक्शी साहब ने लिखा है, और फ़िल्माया गया है राखी और ए. के. हंगल पर, यानी कि मन्ना दा की आवाज़ सजी है हंगल साहब के होठों पर। ऋषीकेश मुखर्जी के निर्देशन में 1978 में बनी थी फ़िल्म जुर्माना और इसमें मुख्य कलाकार थे राखी, अमिताभ बच्चन और विनोद मेहरा। इस फ़िल्म में लता जी के गाये दो और गाने पसंद किये गये "सावन के झूले पड़े तुम चले आओ"। उन्ही की आवाज़ में "छोटी सी एक कली खिली थी बाग़ में"
लेकिन आज जो गीत हम लेकर आये है वो शास्त्रीय रचनाओं में एक अच्छा ख़ासा मुकाम रखता है। रेडियो और ग्रामोफ़ोन तक के सफ़र को इस अकेले गीत में दर्शाया गया है। तो आज संगीत.कॉम में कुछ कुछ मीठा हो जाए, लता जी और मन्ना दा के सुरीली आवाज़ों के साथ, पेश है फ़िल्म ’जुर्माना’ की यह सुमधुर रचना!

 


फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर के पार्श्वगायकों में एक महत्वपूर्ण नाम मन्ना डे साहब का रहा है। भले ही उन्हें  नायकों के पार्श्व गायन के लिए बहुत ज़्यादा मौके नहीं मिले, लेकिन उनकी गायकी का लोहा हर संगीतकार मानता था। शास्त्रीय संगीत में उनकी मज़बूत पकड़ का ही नतीजा था कि जब भी किसी फ़िल्म में शास्त्रीय संगीत पर आधारित, या फिर दूसरे शब्दों में, मुश्किल गीतों की बारी आती थी तो फ़िल्मकारों और संगीतकारों को सब से पहले मन्ना दा की ही याद आ जाती थी।  यूँ तो मन्ना दा ने लता मंगेशकर के साथ ही अपने ज़्यादातर लोकप्रिय युगल गीत गाए हैं, लेकिन आशा जी के साथ भी गाई कई  रचनाएँ हैं। आज  संगीत.कॉम में , मन्ना दा और आशा जी की आवाज़ों में। फ़िल्म 'लाल पत्थर' का यह गीत है "रे मन सुर में गा"। शास्त्रीय गायन की इस पुर-असर जुगलबंदी ने फ़िल्म संगीत के मान सम्मान को कई गुणा बढ़ा दिया है। 'लाल पत्थर' F.C. मेहरा की एक मशहूर और चर्चित फ़िल्म रही है जिसमें राज कुमार, हेमा मालिनी, राखी और विनोद मेहरा जैसे बड़े सितारों ने जानदार भूमिकाएँ निभायी। निर्देशक थे सुशील मजुमदार। फ़िल्म का संगीत तैयार किया, 'शंकर जयकिशन' ने । इस फ़िल्म के गानें लिखे हसरत जयपुरी, नीरज और नवोदित गीतकार देव कोहली ने। देव कोहली ने इस फ़िल्म में किशोर कुमार का गाया "गीत गाता हूँ मैं" लिख कर रातों रात शोहरत की बुलंदी को छू लिया था।  वैसे आज का प्रस्तुत गीत नीरज जी का लिखा हुआ है।  आशा जी और मन्ना डे की आवाज़ में ढला हुआ शास्त्रीय रंग पर आधारित सुरीली रचना 
 



आज संगीत.कॉम में शास्त्रीय संगीत पर आधारित कुछ रचनाएँ इसी श्रंखला में बात करते हैं आगे...........
भारतीय शास्त्रीय संगीत इतना पौराणिक है कि इसके विकास के साथ साथ कई देवी देवताओं के नाम भी इसके साथ जुड़ते चले गए हैं। शिवरंजनी और शंकरा की तरह राग केदार भी भगवान शिव को समर्पित है।  केदार एक महत्वपूर्ण राग है। भारतीय शास्त्रीय संगीत की रागदारी में जितने भी मौलिक स्तंभ हैं, राग केदार के अलावा शायद ही कोई राग होगा जिसमें ये सारी मौलिकताएँ समा सके।
राग केदार की खासियत है कि यह हर तरह के जौनर में आसानी से घुलमिल जाता है जैसे कि ध्रुपद, धमार, ख़याल, ठुमरी वगैरह
 
केदार राग केवल उत्तर भारत तक ही सीमीत नहीं रहा, बल्कि इसका प्रसार दक्षिण में भी हुआ, कर्नाटक शैली में यह जाना गया हमीर कल्याणी के नाम से। फ़िल्म संगीत में इस राग का प्रयोग बहुत सारे संगीतकारों ने किया है। 1971 की फ़िल्म 'गुड्डी' में वाणी जयराम की आवाज़ में वसंत देसाई ने कॊम्पोज़ किया था..

राग केदार पर आधारित आज जिस गीत को हम आप तक पहुँचा रहे हैं वह है  

"हमको मन की शक्ति देना"।





2 comments:

  1. बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

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  2. मेरे पास शब्द नहीं हैं!!!!
    aapki tareef ke liye

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