दर्द - RJSURABHISAXENA

दर्द

उसने कहा तू दर्द ही लिखता है क्यों , आह से सजता है क्यों , दुःख ही तेरे जेवर क्यों है बने ,
क्यों नहीं खुशियों से तू है खेलता ...क्यों नहीं खुशियों के तू  जाम है भरता ...क्यों नहीं रंगीन ख्वाबों के तू हैं अफ़साने गढ़ता 
एक बात समझ वो पाया नहीं ..कि क्यों को कोई आज तक समझ पाया नहीं  ...
हर क्यों का उत्तर हम भी चाहते है , हर दर्द को अपना बनाना चाहते है

खुशियाँ तो चंद दिन साथ होंगी ,दर्द से रिश्ता पुराना होता जायेगा

4 comments:

  1. प्रिय सुरभि (ये तो सही दिया है ना ?या F M गोल्द्की तरह ..?)
    अच्छी कविता है ,इसमें 'तुम' हो
    मैं यही चाहती थी,तुम्हारी रचनाओ में 'तुम' विद्यमान रहो
    दर्द का रिश्ता मनुष्य से बहुत पुराना है
    वो एक गाना भी है 'सुख है एक छाँव आती है ,जाती है
    दुःख तो अपना साथी है ' किन्तु
    शब्दों तक सिमित रहने दो इसे ,निकल दो कविता के माद्यम से इसे बाहर
    जीवन पर इसे हावी मत होने दो ,दर्द को मालूम तो हो कि
    उसका सामना एक 'शेरनी 'से हुआ है
    जो डरपोक या कायर नही है
    खूब खुश रहो ,प्यार को जीवन मन्त्र बना लो
    वो है तो हर दुःख बौना हो जाएगा
    इंदु पुरी
    चित्तोड़ गढ़ (राज)

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  2. ji aapne saraha uske liye shukriya

    Ashish ke liye aabhari hoon dil se

    Surabhi

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  3. ji aapne saraha uske liye shukriya

    Ashish ke liye aabhari hoon dil se

    Surabhi

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  4. अच्छी रचना। बधाई।

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