हाथ मुट्ठी से बंद कर लिए..
हल्दी नहीं थी पास में, पानी से पीले हाथ अब कर दिए
न जाने क्यों जन्मी बेटी, रोते रहे .....उम्र भर ....
बारी आई जब दुआ के लिए भी हाथ मुट्ठी से बंद कर लिए..
एक आस थी ,कुछ सांच थी , कुछ आंच थी , मन में लिए वो चल पड़ी .
कुछ सोचती ,कुछ खोजती ,मंद मंद मुस्कान में आंसू लिए वो सम्हल चली
कुछ कुरेदती ,कुछ सहेजती ,छम छम मचलती वो बहल चली ..
दुल्हन का रूप लिए हुए ,सखियों संग वो चल दिए ...
प्रीत की चुनर जो भाई भेंट करता, वो भी रात के आगोश में सो लिए ..
बारी आई जब, दुआ के लिए भी हाथ मुट्ठी से बंद कर लिए..
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