मुकम्मल
मुकम्मल नही हुआ तो क्या, यही तो संसार है
हर रिश्ता यहाँ जरूरी नहीं गुलज़ार है
कुछ मिले न मिले ,तेरा हँसना एक कमाल है
नहीं तो हर तरफ़ दर्द का कारोबार है
हर रिश्ता यहाँ जरूरी नहीं गुलज़ार है
कुछ मिले न मिले ,तेरा हँसना एक कमाल है
नहीं तो हर तरफ़ दर्द का कारोबार है
सुरभि जी
ReplyDeleteअभिवंदन
कितनी सुन्दर पंक्ति है :-
नहीं तो हर तरफ़ दर्द का कारोबार है
अच्छा लिखा है, बधाई
- विजय