साज़ की तरह - RJSURABHISAXENA

साज़ की तरह

देखा कल एक सपना
तुम आए साज़ की तरह
खुशियों की आवाज़ की तरह
साथ चलते रहे,कभी उड़े साथ मेरे
कभी चहके परवाज़ की तरह
कभी तुम बिगड़े मुझ से यूँ..दर्द देकर ही गये
लो कभी तुम मिले हमसे हम-राज़ की तरह...
अब तो याद ही रह गयी है आसपास तेरी मेरी।
बैठे है इंतज़ार में तेरी तू कह दे कभी गुलज़ार की तरह ....

2 comments:

  1. nice kavita dil ko choo lene wali bat

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  2. sapna,
    saz,
    khushi,
    parwaz,
    dard,
    hum raz,
    gulzar

    ka prayog bhut hi sundar tarike se hua hai ....

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