कसर
बहुत से दुःख मेरे दिल को छलते जाते है
बुझे मन से अंगारों पर हम चलते जाते हैं
कभी कही किसी मोड़ पर तुमने मेरे बारे में है सोचा
बस यही ख्याल ख़ुद में हम बुनते जाते है
कभी नहीं था कोई एक तेरे सिवा मेरा अपना कोई
बस यही जज़्बात मन में लिए हम, तुमसे कुछ कह नहीं पाते है
अब तो कसर भी नहीं रखी आपने कि कुछ गिला शिकवा कर लें
चले जा रहे है राह में, अकेले शूल सहते जाते है
बुझे मन से अंगारों पर हम चलते जाते हैं
कभी कही किसी मोड़ पर तुमने मेरे बारे में है सोचा
बस यही ख्याल ख़ुद में हम बुनते जाते है
कभी नहीं था कोई एक तेरे सिवा मेरा अपना कोई
बस यही जज़्बात मन में लिए हम, तुमसे कुछ कह नहीं पाते है
अब तो कसर भी नहीं रखी आपने कि कुछ गिला शिकवा कर लें
चले जा रहे है राह में, अकेले शूल सहते जाते है
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