सावन बनकर - RJSURABHISAXENA

सावन बनकर



काश कभी हम भी तो 
एक कागज़ का टुकडा होते
हाथ तुम्हारे हम आते 
ये नयन तुम्हारे हमको छूते
तेरे सीने की गरमी से 
कुछ ठंडक भी हम पाते
काश कभी तुम हमको पढ़ लो
अपने प्यार के मोती में गढ़ लो
सूख रहा है ये इश्क का सागर
सावन बनकर ॥
तुम मेरे जीवन-मन को तर कर दो ॥

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