शशि कपूर - जेंटलमैंन स्टार
18 मार्च, 1938)[1] को जन्में शशि कपूर हिन्दी फ़िल्मों के एक अभिनेता हैं। शशि कपूर हिन्दी फिल्मों में लोकप्रिय कपूर परिवार के सदस्य हैं।
भारत सरकार ने वर्ष 2011 में उनको पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया।[2]
शशि कपूर साहब को दादासाहेब फाल्के पुरस्कार से वर्ष 2014 -2015 में सम्मानित किया।[3]
अपने पिता पृथ्वीराज कपूर और बड़े भाई राजकपूर के बाद यह सम्मान पाने वाले कपूर परिवार के तीसरे सदस्य बन गये।
भारत सरकार ने वर्ष 2011 में उनको पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया।[2]
शशि कपूर साहब को दादासाहेब फाल्के पुरस्कार से वर्ष 2014 -2015 में सम्मानित किया।[3]
अपने पिता पृथ्वीराज कपूर और बड़े भाई राजकपूर के बाद यह सम्मान पाने वाले कपूर परिवार के तीसरे सदस्य बन गये।
व्यक्तिगत जीवन
शशि कपूर का असली नाम बलबीर राज कपूर है। आपका जन्म जाने माने अभिनेता पृथ्वीराज कपूर के घर पर हुआ।[4] अपने पिता एवं भाइयो की तरह शशि कपूर ने भी फिल्मो में ही अपनी तक़दीर आजमाई। शशि कपूर ने ४० के दशक से ही फिल्मों में काम करना शुरू कर दिया था।
आपने कई धार्मिक फिल्मो में भूमिकाये निभाई।शशि ने मुंबई के डोन बोस्की सकूल से पदाई पूरी की। पिता पृथ्वीराज कपूर इनको छुटिट्यो के दोरान स्टेज पर अभिनय करने के लिए प्रोत्साहित करते रहते थे। इसकी का नतीजा रहा की शशि के बड़े भाई राजकपूर ने उन्हें 'आग' (१९४८) और 'आवारा' (१९५१) में भूमिकाएं दी। आवारा में उन्होंने राजकपूर के बचपन का रोल किया था। ५० के दशक मे पिता की सलाह पर वे गोद्फ्रे कैंडल के थियेटर ग्रुप 'शेक्स्पियाराना' में शामिल हो गए[5] और उसके साथ दुनिया भर में यात्राये की। इसी दोरान गोद्फ्रे की बेटी और ब्रिटिश अभिनेत्री जेनिफर से उन्हें प्रेम हुआ और मात्र २० वर्ष की उम्र में १९५० में विवाह कर लिया। शशि कपूर ने गैर परम्परागत किस्म की भूमिकाओ के साथ सिनेमा के परदे पर आगाज किया था। उन्होंने सांप्रदायिक दंगो पर आधारित धर्मपुत्र (१९६१) में काम किया था। उसके बाद चार दीवारी और प्रेमपत्र[6] जैसी ऑफ बीत फिल्मो में नजर आये। वे हिंदी सिनेमा के पहले ऐसे अभिनेता थे जिन्होंने हाउसहोल्डर और शेक्सपियर वाला जैसी अंग्रेजी फिल्मो में मुख्या भूमिकाये निभाई। वर्ष १९६५ उनके लिए एक महत्वपूर्ण साल था। इसी साल उनकी पहली जुबली फिल्म 'जब जब फूल खिले' रिलीज हुई और यश चोपड़ा ने उन्हें भारत की पहली बहुल अभिनेताओ वाली हिंदी फिल्म 'वक्त' के लिए कास्ट किया। बॉक्स ऑफिस पर लगातार दो बड़ी हिट फिल्मो के बाद व्यावहारिकता का तकाजा यह था की शशि कपूर परम्परागत भूमिकाये करे, लेकिन उनके अन्दर का अभिनेता इसके लिए तैयार नहीं था। इसके बाद उन्होंने 'ए मत्तेर ऑफ़ इन्नोसेंस' और 'प्रीटी परली ६७' जसी फिल्मे की. वहीँ हसीना मन जाएगी, प्यार का मोसम ने उन्हें एक चोकलेटी हीरो के रूप में स्थापित किया। वर्ष १९७२ की फिल्म सिथार्थ के साथ उन्होंने अन्तराष्ट्रीय सिनेमा के मंच पर अपनी मोजुदगी कायक राखी. ७० के दसक में शशि कपूर सबसे व्यस्त अभिनेताओ में से एक थे। इसी दसक में उनकी 'चोर मचाये शोर', दीवार, कभी - कभी, दूसरा आदमी और 'सत्यम शिवम् सुन्दरम' जैसी हिट फिल्मे रिलीज हुयी. वर्ष १९७१ में पिता पृथ्वीराज की मृत्यु के बाद शशि कपूर ने जेनिफर के साथ मिलकर पिता के स्वप्न को जरी रखने के लिए मुंबई में पृथ्वी थियेटर का पुनरूथान किया। अमिताभ बच्चन के साथ आई उनकी फिल्मो दीवार, कभी - कभी, त्रिशूल, सिलसिला, नमक हलाल, दो और दो पञ्च, शान ने भी उन्हें बहुत लोकप्रियता दिलवाई. १९७७ में इन्होने अपनी होम प्रोडक्सन क. 'फिल्म्वालाज' लॉन्च की।[7]
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