रत्नों का प्रयोग इलाज़ के लिये
रत्नों से हो सकता है रोगों का नाश

कैल्शियम की कमी के कारण उत्पन्न रोगों में मोती बहुत लाभकारी होता है। मुक्ता भस्म से क्षयरोग, पुराना ज्वर, खांसी, श्वास-कष्ट, रक्तचाप, हृदयरोग में लाभ मिलता है।
मूंगे को केवड़े में घिसकर गर्भवती के पेट पर लेप लगाने से गिरता हुआ गर्भ रुक जाता है। मूंगे को गुलाब जल में बारीक पीसकर छाया में सुखाकर शहद के साथ सेवन करने से शरीर पुष्ट बनता है। खांसी, अग्निमांद्य, पांडुरोग की उत्कृष्ट औषधि है।
पन्ना, गुलाब जल या केवड़े के जल में घोटकर उपयोग में आता है। यह मूत्र रोग, रक्त व्याधि और हृदय रोग में लाभदायक है। पन्ने की भस्म ठंडी मेदवर्धक है, भूख बढ़ाती है, दमा, मिचली, वमन, अजीर्ण, बवासीर, पांडु रोग में लाभदायक है।
श्वेत पुखराज को गुलाबजल या केवड़े में 25 दिन तक घोटा जाए और जब यह काजल की तरह पिस जाए तो इसे छाया में सुखा लें। यह पीलिया, आमवात, खांसी, श्वास कष्ट, बवासीर आदि रोगों में लाभकारी सिद्ध होता है।

रसराज समुच्चय के अनुसार, हीरे में विशेष गुण यह है कि रोगी यदि जीवन की अंतिम सांस ले रहा हो, ऐसी अवस्था में हीरे की भस्म की एक खुराक से चैतन्यता आ जाती है।
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