विभिन्न रोगों में प्रयुक्त होने वाले प्राणायाम
(१.) भस्त्रिका-प्राणायाम----सर्दी, जुकाम, एलर्जी, श्वास-रोग, दमा, पुराना नजला, शाइनस, थायराइड, टॉन्सिल, गले के समस्त रोग आदि विकारों में लाभ होता है ।
शरीर के विषाक्ता तथा विजातीय द्रव्यों का निष्कासन होता है व हृदय तथा मस्तिष्क को शुद्ध प्राणवायु मिलने से आरोग्य लाभ होता है ।
(२.) कपालभाति----समस्त कफज विकार दमा, एलर्जी, साइनस, मोटापा, मधुमेह, गैस, कब्ज, अम्लपित्त, वृक्क तथा प्रोस्टेट से सम्बन्धित विकार, आमाशय, अग्नाशय तथा यकृत-प्लीहा विकारों में लाभ होता है ।
(३.) बाह्य-प्राणायाम (रेचक)---स्वप्न-दोष, शीघ्रपतन आदि धातु विकारों तथा उदर रोग, गुदाभ्रंश, अर्श, फिशर, भगन्दर, योनिभ्रंश, बहुमूत्र एवं यौन रोगों में लाभ होता है । इससे जठराग्नि प्रदीप्त होती है ।
(४.) उज्जायी----जीर्ण प्रतिश्याय, पुरानी खाँसी, थायराइड ग्रन्थि की अल्प तथा अति क्रियाशीलता से उत्पन्न विकार, हृदय रोग, फुफ्फुस एवं कण्ठ-विकार, अनिद्रा, मानसिक तनाव, टॉन्सिल, अजीर्ण, आमवात, जलोदर, क्षय तथा ज्वर में लाभ होता है ।
(५.) अनुलोम-विलोम---कैंसर, श्वित्र आदि त्वचा विकार, सोरायसिस, मस्क्युलर डिस्ट्रॉफी, एस. एल. ई. , नपुंसकता, एड्स, जुकाम, अस्थमा, खाँसी, टॉन्सिल आदि कफज विकार तथा कॉलेस्ट्राल जन्य विकारों में लाभ होता है ।
(६.) भ्रामरी---कैंसर, अवसाद, आधाशीशी का दर्द, हृदय विकार, नेत्र रोग, मानसिक तनाव, उत्तेजना तथा उच्च रक्त चाप आदि में लाभ ।
(७.) उद्गीथ---श्वास आदि कफज विकारों में लाभप्रद ।
Post a Comment