मौसमी चटर्जी - RJSURABHISAXENA

मौसमी चटर्जी

महज़ चौदह साल की उम्र में फ़िल्मी दुनिया में प्रवेश किया उन्होंने जिनका नाम था इंदिरा
पहली फ़िल्म रही बालिका वधू ... लेकिन जल्द ही इंदिरा को अपना नाम बदलना बदलना पड़ा.

तरुण मजूमदार ने कहा था कि इंदिरा से ज्यादा उन पर मौसमी नाम सूट करेगा
और इस तरह मौसमी चटर्जी फिल्मी दुनिया में आ गई पांचवीं कक्षा में पढ़ती थीं इंदिरा चटर्जी

बॉलीवुड में मौसमी चटर्जी को एक ऐसी अभिनेत्री के तौर पर शुमार किया जाता है जिन्होंने 70 और 80 के दशक में अपनी रूमानी अदाओं से दर्शकों को अपना दीवाना बनाए रखा


26 अप्रेल 1953 को कोलकाता में जन्मी मौसमी चटर्जी ने अपने अभिनय जीवन की शुरूआत साल 1967 में प्रदर्शित बंगला फिल्म बालिका वधू से की। फिल्म टिकट खिड़की पर सुपरहिट साबित हुई। बॉलीवुड में मौसमी चटर्जी ने अपने करियर की शुरूआत साल 1972 में प्रदर्शित फिल्म अनुराग से की। इस फिल्म में मौसमी के अपोजिट विनोद मेहरा थे।

शक्ति सामंत के निर्देशन में बनी अनुराग में मौसमी चटर्जी ने अंधी लड़की का किरदार निभाया था। करियर की शुरूआत में इस तरह का किरदार किसी भी नई अभिनेत्री के लिए जोखिम भरा हो सकता था लेकिन मौसमी ने अपने संजीदा अभिनय से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। इस फिल्म के लिए मौसमी को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के फिल्म फेयर पुरस्कार से नामांकित किया गया।


साल 1974 में मौसमी चटर्जी ने रोटी कपड़ा और मकान और बेनाम जैसी सुपरहिट फिल्मों में अभिनय किया। रोटी कपड़ा और मकान के लिए मौसमी चटर्जी को सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के फिल्म फेयर पुरस्कार का नामांकन मिला।

साल 1976 में मौसमी चटजी की एक और सुपरहिट फिल्म सबसे बड़ा रूपया प्रदर्शित हुई।

कंधे पर बस्ता टांगे हुए, लंबी- लंबी दो चोटियां, खिलखिलाती सहेलियों के साथ स्कूल जाते हुए. मासूमियत भरी मस्ती और हंसने पर बढ़ा हुआ दांत दिखना उन्हें और भी मासूम बना देता था

मौसमी जितनी कम उम्र में परदे पर आई, उतनी ही कम उम्र में उनका विवाह भी हो गया. संयोग से प्रसिद्ध गायक हेमंत कुमार ने अपने बेटे रीतेश के लिए मौसमी का हाथ मांग लिया. विवाह कोलकाता में हुआ लेकिन स्वागत समारोह मुंबई में आयोजित हुआ...

लोग आज भी मौसमी के गालों के डिम्पल और टूटे दांत से मुस्कुराती हुई छवि के दीवाने है


बिना ग्लिसरीन के ही रो पड़ती थी'

मौसमी चटर्जी के बारे में कहा जाता था कि वो रोने वाले दृश्य बड़े ही सरलता के साथ कर लेती थीं और इसके लिए उन्हें ग्लीसरीन की भी ज़रूरत नहीं पड़ती थी.


मौसमी चटर्जी 
जब हमने ये सवाल मौसमी से पुछा तो वो मुस्कुराती हुई बोलीं, "हां ये सच है. ये भी ऊपरवाले का दिया हुआ एक वरदान है."
वो आगे कहती हैं, "जब किसी दृश्य में मुझे रोना होता था तो मैं सोचती थी कि ये मेरे साथ सच में हो रहा है और मैं रो पड़ती थी."

मौसमी का फिल्मी सफर

उसके बाद मौसमी ने कई प्रमुख फिल्मों में उस दौर के सभी बड़े अभिनेताओं के साथ काम किया. ‘रोटी, कपड़ा और मकान’, ‘उधार की जिंदगी’, ‘मंजिल’, ‘बेनाम’, ‘जहरीले इंसान’, ‘हमशक्ल’, ‘सबसे बड़ा रुपइया’ और ‘स्वयंवर’ उल्लेखनीय फिल्में हैं. 

लेकिन 1982 में गुलजार की फिल्म ‘अंगूर’ ने बहुत बड़ी सफलता हासिल की थी. यों तो फिल्म की सफलता का पूरा श्रेय संजीव कुमार और देवेन वर्मा को मिला था लेकिन मौसमी चटर्जी ‘अंगूर’ में काम करके बेहद खुश हुई थीं. 

मौसमी की बड़ी बेटी मेघा को भी उनकी ही तरह तरुण मजूमदार बंगाली फिल्म ‘भालोबासेर अनेक’ नाम से फिल्मी दुनिया में पदार्पण करवा चुके हैं. यह जानना दिलचस्प होगा कि इस फिल्म में मौसमी ने मेघा की चचेरी बहन की भूमिका अदा की है. 

उनकी छोटी बेटी पायल भी कैमरे की बारीकियां समझने लगी हैं. हाल ही में मौसमी चटर्जी को बंगाल सिने आर्टिस्ट द्वारा लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड प्रदान किया गया.


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