सब्र - RJSURABHISAXENA

सब्र

एक नगर में एक जुलाहा रहता था।

वह स्वाभाव से अत्यंत शांत, नम्र तथा वफादार था।

उसे क्रोध तो कभी आता ही नहीं था। 

एक बार कुछ लड़कों को शरारत सूझी।

वे सब उस जुलाहे के पास यह सोचकर पहुँचे कि देखें इसे गुस्सा कैसे नहीं आता?

उन में एक लड़का धनवान माता-पिता का पुत्र था।

वहाँ पहुँचकर वह बोला यह साड़ी कितने की दोगे ?

जुलाहे ने कहा -
दस रुपये की।

तब लडके ने उसे चिढ़ाने के उद्देश्य से साड़ी के दो टुकड़े कर दिये और एक टुकड़ा हाथ में लेकर बोला - मुझे पूरी साड़ी नहीं चाहिए, आधी चाहिए।

इसका क्या दाम लोगे ?

जुलाहे ने बड़ी शान्ति से कहा

पाँच रुपये।

लडके ने उस टुकड़े के भी दो भाग किये और दाम पूछा ?

जुलाहे अब भी शांत था।

उसने बताया -
ढाई रुपये।

लड़का इसी प्रकार साड़ी के टुकड़े करता गया।

अंत में बोला -
अब मुझे यह साड़ी नहीं चाहिए। यह टुकड़े मेरे किस काम के ?

जुलाहे ने शांत भाव से कहा -

बेटे !
अब यह टुकड़े तुम्हारे ही क्या, किसी के भी काम के नहीं रहे।

अब लडके को शर्म आई और कहने लगा -
मैंने आपका नुकसान किया है।

अंतः मैं आपकी साड़ी का दाम दे देता हूँ।

संत जुलाहे ने कहा कि जब आपने साड़ी ली ही नहीं तब मैं आपसे पैसे कैसे ले सकता हूँ ?

लडके का अभिमान जागा और वह कहने लगा कि, मैं बहुत अमीर आदमी हूँ।

तुम गरीब हो।

मैं रुपये दे दूँगा तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा, पर तुम यह घाटा कैसे सहोगे?

और नुकसान मैंने किया है तो घाटा भी मुझे ही पूरा करना चाहिए।

संत जुलाहे मुस्कुराते हुए कहने लगे -

तुम यह घाटा पूरा नहीं कर सकते। सोचो, किसान का कितना श्रम लगा तब कपास पैदा हुई।

फिर मेरी स्त्री ने अपनी मेहनत से उस कपास को बीना और सूत काता।

फिर मैंने उसे रंगा और बुना। इतनी मेहनत तभी सफल हो जब इसे कोई पहनता, इससे लाभ उठाता, इसका उपयोग करता।

पर तुमने उसके टुकड़े-टुकड़े कर डाले।

रुपये से यह घाटा कैसे पूरा होगा ?

जुलाहे की आवाज़ में आक्रोश के स्थान पर अत्यंत दया और सौम्यता थी।

लड़का शर्म से पानी-पानी हो गया।

उसकी आँखे भर आई और वह संत के पैरो में गिर गया।

जुलाहे ने बड़े प्यार से उसे उठाकर उसकी पीठ पर हाथ फिराते हुए कहा -

बेटा, यदि मैं तुम्हारे रुपये ले लेता तो , उससे मेरा काम चल जाता।

पर तुम्हारी ज़िन्दगी का वही हाल होता जो उस साड़ी का हुआ।

कोई भी उससे लाभ नहीं होता।

साड़ी एक गई, मैं दूसरी बना दूँगा।

पर तुम्हारी ज़िन्दगी एक बार अहंकार में नष्ट हो गई तो दूसरी कहाँ से लाओगे तुम ?

तुम्हारा पश्चाताप ही मेरे लिए बहुत कीमती है।

संत की उँची सोच-समझ ने लडके का जीवन बदल दिया।

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