झगड़ालू लोग
आयुष्मान,
तुम्हारा देश बड़ा विचित्र है। तुम किसी बात पर झगडा आरम्भ कर देते हो। पहले तुम मंदिर और मस्जिद पर लड़ते थे, चोटीवाला दाढ़ीवाले से लड़ जाता था। आखिर तुमने मुल्क के दो हिस्से कराके दम लिया।
अब स्वतंत्रता के बाद क्या करे ? झगडा प्रिय जाति को कोई न कोई कारण उलझने को चहिये। तुम्हारी हालत उस झगडालू लोमडी की तरह है, जो जानबूझकर कारण ढूंढती है। एक दिन सवेरे उसे झगड़ने को नहीं मिला, तो दोपहर को वह अपनी साथिन सीधी लोमड़ी के पास जाकर बोली, "आ बहिन, हम झगडे !" सीधी लोमड़ी बोली, "क्यों झगडे ? कोई बात तो हो". झगडेल लोमड़ी ने कहा, "देख वह सामने पेड़ खड़ा है उसी पर हम लोग झगडा करे. मैं कहूँगी ये पेड़ मेरा है; तू कहना की नहीं मेरा है। बस झगडा शुरू हो जाएगा। अच्छा रेडी !" सीधी लोमड़ी तैयार हो गयी। झगडेल लोमड़ी बोली, "ऐ लोमड़ी की बच्ची, वह पेड़ मेरा है। " वह प्रत्युतर के लिए रुकी। सीधी लोमड़ी शांति से बोली ," बहिन, तेरा है, तो तू ही ले जा। " झगडालू लोमड़ी बड़ी खिझी और यह कहती चली गयी की बेवकूफ, तुम्हे तो झगड़ना तक नहीं आता।
तुम्हारे यहाँ अनेक लोगो की हालत झगडालू लोमड़ी सरीखी है, पर सीधी लोमड़ी सा कोई नहीं है, इसलिए झगडा बढता ही जाता है।
~हरिशंकर परसाई
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