खनक - RJSURABHISAXENA

खनक

खनक बनकर वो मेरे दिल में  कुछ यूँ मचले 
जैसे कोई सागर लहर किनारे के लिए तड़पे
जब भी वो मुस्कुराये, बहारों  के मौसम आये, 
ख़ुशबू ज़ुल्फों से उठ चली, फूलों पर भवरें गुनगुनाए


सुरभि " सुर "

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