जिसके लिए हस्ति है मेरी - RJSURABHISAXENA

जिसके लिए हस्ति है मेरी

एक तुम तक नहीं था रास्ता मेरा
एक तुम ही नहीं थे मंजिल मेरी
कुछ और भी मैं पा सकती थी
एक दौर नया रच सकती थी
हर दर्द को कम कर सकती थी
इतनी तो समझ मुझ में भी थी
एक नयी इबारत लिख सकती थी
फिर कैसे मैं रुक सकती थी
फिर क्यों कर मैं झुक सकती थी
दर्द उसे ही मिलता है जो दर्द का विष पीना जाने
हर हाल में, जो हर बस्ती में रह  जीना जाने
तुम मेरे लिए करते भी क्या ..
जब अपने लिए कुछ कर पाए ना...
हाथ में जैसे रेत भरे ,वक़्त तुम्हारा छूट गया
मेरे आगे रखा हुआ, वो शीशा भी टूट गया
इतनी तो समझ मुझ में भी थी
एक नयी इबारत लिख सकती थी
एक तुम ही नहीं थे रास्ता मेरा , एक तुम पे नहीं मंजिल थी मेरी..
हाथ बढ़ा पाना है बहुत कुछ अभी ........जिसके लिए हस्ति है मेरी

1 comment:

  1. बहुत बढ़िया.

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    हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!

    लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.

    अनेक शुभकामनाएँ.

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