तन्हाई ... - RJSURABHISAXENA

तन्हाई ...

क्यों बसे हो तुम मेरी रचनाओं में
क्यों नहीं आते मेरी तन्हाई में .....

क्यों मिलते नहीं तुम ,गुल बन क्यों खिलते नहीं तुम
नींद बन आँखों में आते तो हो, ख़्वाब बन तड़पाते भी हो, पर अगले ही पल 
अंगड़ाई बन उड़ जाते हो तुम 
कुछ देर तो ठहर..... थम जा ....बस एक पल की जुदाई में 

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