- RJSURABHISAXENA
"एक सरलता है बालक सी
पालक सा है जिसमें प्यार,
नेत्रों में है, निर्मल ज्योति
ह्रदय में, कोमल दुलार"

"द्रढ-प्रतिज्ञ,कोमल है मन
वीर भारती, हैं सजल नयन
कंटक सी, राहें हैं जिनकी
ये पद -क्षेत्र है लहुलुहान

"आह नहीं फिर भी भरता,
है सत्य मार्गी, कर्ता धर्ता
इस झूठ स्वार्थ की बेदी पे
उसे भी है जलना पड़ता

"है सदाचार, उत्तम विचार
दिया प्राण को सहजाचार,
मर्यादा के बंधन में बंधकर
हों शासित, अपनों से हटकर"

"तुम दिव्य-पुंज, महात्मा हो
शीतल उज्जवल आत्मा हो
जनहित चिर आकांक्षित हो,
शांत सरल तुम बुद्धात्मा हो"

surabhi

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