गरल
गरल पीना इतना आसान कहाँ था,
तेरे बिना जीना इतना आसान कहाँ था ,
दर्द को अब अपना लिया है हमने ,
नहीं तो दर्द को सहना इतना आसान कहाँ था
एक तेरे आने से ,मोहब्बत के सिवा सब कुछ मेरे दामन में आ सिमटा,
तुम्हारे दर्द ने हर पल मुझे तन्हा अकेला ही रखा,
अगर मिल जाती महफ़िल तो , महफ़िल में रहना इतना आसान कहाँ था
तेरे बिना जीना इतना आसान कहाँ था ,
दर्द को अब अपना लिया है हमने ,
नहीं तो दर्द को सहना इतना आसान कहाँ था
एक तेरे आने से ,मोहब्बत के सिवा सब कुछ मेरे दामन में आ सिमटा,
तुम्हारे दर्द ने हर पल मुझे तन्हा अकेला ही रखा,
अगर मिल जाती महफ़िल तो , महफ़िल में रहना इतना आसान कहाँ था
सुरभी
ReplyDeleteसुन्दर भाव के साथ कही गई कविता है
आप गजल लिखा करिए आपकी कविता के भाव बिक्कुल गजल की तरह है
गजल व बहर के विषय में कोई भी जानकारी चाहिए हो तो सुबीर जी के ब्लॉग पर जाइये
इसे पाने के लिए आप इस पते पर क्लिक कर सकते हैं।
आप यहाँ जा कर पुरानी पोस्ट पढिये
कविता की लाइनों को अलग अलग कर दो तो पढने का आनंद दुगना हो जाये
वीनस केसरी
surabhi jee wah wah kya baat hai maza aa gya
ReplyDeletesurabhi jee wah wah kya baat hai maza aa gya
ReplyDeleteधन्यवाद जी ,
ReplyDeleteअपनी हर रचना के लिए बस मेरा तो इतना ही कहना है :
ज़िन्दगी ने इतना गम दिया कि ,हमने ख़ुद को गम में मिला लिया ...
अब तो आँसू भी नहीं आते, वो सूख कर मोती भी बन चुके ,
अब तो हँसते हैं हम हर पल , हमने ख़ुद को अब तो सुगम है बना लिया ..
तेरी ख़ुशी में ख़ुश थे ,तेरे दर्द से हम होते थे जब दुखी ..
अब अपने ही गम कि खबर कहाँ है दोस्त ,जब हमने ख़ुद को ही ख़ाक में मिला लिया
फूलों से दोस्ती कर मत हो दुखी तू ये मन .........
भंवरा मगन है अपनी ही चाल में ,हमने तो ख़ुद को फूल की सुरभि बना लिया .....
सीख गया हूं मैं जीवन को जीना,
ReplyDeleteबिन तेरे भी होगा बारहो महीना,
क्युं तड़पूं मैं, क्युं नीर बहे,
दर्द कोई अब हम ना सहें,
जब तुझको भी परवाह नहीं,
तो मै भी चलूं उस राह नहीं,
बस धन्यवाद, अब तक के लिये,
तुम उधर हुए, हम इधर चले..
surabhee jee achhee rachanaa thee,akelepan kee vednaa aur jeevan se ek tarah kaa samjhautaa, yaa yun kahe ki khud ko mazboot karne ki koshish.. jhalak rahee thee aapki is rachnaa me..