काव्य
मेरे जीवन के गीतों मैं जो तुम आकर बस जाते
मामूली से गीत वही क्या काव्य नही कहलाते
उन गीतों को जो तुम गा लो तो मेरा जीवन सार्थक हो जाए
गीतों के बोलो मैं घुल कर.
बांसुरी कि तानो को सुन कर मैं तेरी मीरा हो जाऊ.
थाम जो लेते तुम मेरे जीवन के दुखो को।
तो क्या वो दुःख फिर मेरे घन शाम नही बन जाते ।
सुरभि
VERY NICE........
ReplyDeleteअच्छा लिखा है आपने , साथ ही आपका चिटठा भी खूबसूरत है । यूँ ही लिखते रहे ।
ReplyDeleteहमें भी उर्जा मिलेगी ,
धन्यवाद
मयूरअपनी अपनी डगर
thnks ji
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